मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

चम्बल के किनारे


  जब भी वक़्त मिलता है चम्बल के किनारे जा बैठता हूँ । आज भी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर चम्बल के किनारे खेडा अजब सिंह जाना था । चम्बल की पट्टी के लगभग ग्रामों में रोजगार के लिये पलायन आम बात है । बड़ी संख्या में घर खाली पड़े हैं और यहां के निवासी गण अहमदाबाद और दिल्ली जैसे महानगर में छोटे बड़े विभिन्न तरह के कामो में रत हैं ।पांच साल में एक बार ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रहा प्रत्यासी इनकी सुध लेता है और इन गांवों से बस भेजकर वोट देने के लिए बुला लिया जाता है । जो यहां रहते हैं उनके बच्चे यहां के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं ।बड़े कान्वेंट अंग्रेज़ी दां निजी  स्कूल को इन क्षेत्रों में बिज़नेस नज़र नही आता कि वे यहाँ कोई शाखा खोले ।लिहाज सरकारी स्कूल के जिम्मे ही इन गांवों की उन्नति का जिम्मा है । मेरी जिम्मेदारी इन विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की अकादमिक उन्नति का प्रयास करना और शिक्षकों को नए तौर तरीकों की जानकारी देना है । हालांकि बहुत लोग इन बीहड़ों में नही आना चाहते पर मुझे इन बीहड़ों में घूमना अच्छा लगता है । जन्म भूमि भले पश्चिम बंगाल का शिल्पांचल है पर पैतृक भूमि इसी चम्बल का किनारा है ।

खैर लगभग 12 बजे थे जब हम यहां के स्कूल पहुचे । अंदेशा था शायद सभी टीचर्स स्कूल में न मिलें पर सब थे ।और उम्मीद से ज्यादा यह था कि एक गर्म चाय का प्याला भी उपलब्ध था मेरे लिए ।  अपना काम निपटा कर नदी की तरफ जाने को कह कर आगे बढ़ गए । गांव के अंत मे बबूलों से घिरी एक इमारत नज़र आ रही है । पूछने पर मालूम हुआ कि यह बारात घर बनवाया गया है । गाँव खत्म होते ही एक ढलान है वहां से तेजी से नीचे की तरफ उतरते चले जाइये । पगडंडी बढती जाती है चारो तरफ ऊंचे ऊंचे मिट्टी के टीले । साथ चल रहा व्यक्ति कहता है कि नदी जब बढती है तो ये सारे टीले डूब जाते हैं ऊपर देखते हैं तो टाइल पर उगे हुए पेड़ों की जड़ें आधी हवा में झूलती नज़र आती है । बाढ़ का उतरता हुआ पानी मिट्टी को साथ ले गया है और जड़ें हवा में लटक रही है । यहां के निवासियों के हक़  की समृद्धि भी शायद कुछ लोग ऐसे ही चुरा ले गए हैं और ये जड़ें भी जीवनी शक्ति पाने के लिए झूल रही हैं ।

छोड़ो निठल्ला चिंतन ।

साथ चलने वाला साथी कहता है कभी पूरा समय निकल कर आइये सर यही दाल और टिक्कड़ बनवाते हैं । अचानक 1 नरिया से आवाज आती है " हमारा भी न्योता कर देना " कोई दिख नही रहा इधर उधर देखता हूँ । साथी व्यक्ति कहता है तुम ही तो बनाओगे । आवाज देने वाला अभी भी नज़र नही आता सिर्फ आवाज़ आ रही है । डकैत ऐसे ही छुपे रहते होंगे सोचता हूँ ।मन मे आता है कि यहाँ की गरीबी अशिक्षा और दो राज्यों की सीमा इसे डकैतों के घाटी बना देती है  । यह नदी क्या अब तक शापित है । यह घाटी सिर्फ डाकुओं के लिए ही जानी जाती रहेगी क्या। उफ फिर वही निठल्ला चिंतन । नदी  पास आ गयी है नदी की ढलान पर सरसों , चना बोया गया है । मचान बने हैं रात को खेत की रखवाली भी होती होगी । नदी के उस पर रेत पर चार मगर बैठे हुए हैं । इस पर हम बैठ जाते हैं । नदी में फारेस्ट डिपार्टमेंट का स्टीमर नदी के बीचों बीच पानी चीरता हुआ बढ़ रहा है । मगरों की गिनती चल रही है । देखिए दूरबीन से देख रहे हैं ।पानई में डॉलफिन भी है । साथ बैठ व्यक्ति कहता है कि कुछ दिन पहले आये होते तो स्टीमर की सैर करवा देता । ग्राम प्रधान से झगड़ा हो गया था उसने नौकरी से हटवा दिया  अफसर से कह कर । नदी के इस किनारे पथरीला तट है एक चबूतरा से बना है उस पर बैठ जाता हूँ । सूरज आज चटक निकला है धूप थोड़ी चुभ रही है पर शांत बहती हुई नदी और उसके किनारे पर लेटे मगर अछ्छे लग रहे हैं । आज कैमरा लाना चाहिए था । पर कोई नही अच्चजे तो लग ही रहा है । लगभग 1 घंटे बाद चलते हुए कहता हूँ अगली बार लंच यहीं करेंगे । साथी बट्टा है कि इस बार दूसरी तरफ चलेंगे उस करार के पीछे आपको ढेर सारे मगर दिखाई देंगे । में उसे देखता हूँ जी करता है कह दूं तुम्हारे आस पास कितने मगर हैं तुम देख नही पा रहे ,भोले हो । दिमाग झटका देता है ।फिर वही निठल्ला चिंतन । और में मुस्कुरा कर कहता हूँ ठीक है जैसा तुम कहो ।

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

मेरा सलाम है

 औरतें घरों में रहें

घर के काम करें 

बच्चे पालें 

दही जमाएं 

मठा निकालें

रोटी चूल्हा चौका से आगे न सोचें

न हंसें न मुस्कुराएं 

न नाचें गायें खुशियां मनाएं

क्योंकि हंसना सभ्यता के खिलाफ है 

संस्कृति मटियामेट हो जाती है 

औरतों के हंसने से 

उनकी हंसी 

ज्यादा घातक है 

नाग के भी डसने से 

और ये खेलना कूदना 

और वह भी हॉकी और क्रिकेट

तौबा करो

बनाये तो हैं खेल गुड्डे गुड़ियों के 

वे खेलें तो थोड़ी तमीज आए

बच्चे पालने की 

वे बच्चे

जो चलाएंगे हम पुरुषों के वंश को 

ये क्या दिन भर खी खी कर

खेल रही हैं खो खो

 इन्हें रोको 

ये खिलाफ है परंपरा के 

की ये जो चाहे करें

किसी से न डरें

इन्हें डरना चाहिए 

हम दे सकते हैं फतवा 

की ये हैं चरित्र हीन

नाच रही हैं मैदान में

क्या अंतर रह गया है 

इनमें और शैतान में 

हमने पहले भी दिया है दण्ड

लगाए हैं कोड़े

क्योंकि हमी अदालत हमी दलीलें

और हम ही वो जिन्होंने 

हर बार फैसला दिया

इन्हें क्या मालूम

कितनो को तो हमने डायन बताया

और जिंदा जला दिया 

और ये नाच रही हैं खेल के मैदान में 

हमारी आवाज़ पहुच जाए उनके कान में

कि वे  अपने घरों की चारदीवारी में

सर ढक कर परदों  में रहें 

हँसना खेलना 

नाचना गाना 

खुशियां मनाना 

सब भूल जाएं

जो हम कहें 

वे वही करें 

हमे अपना खुदा माने और 

हमसे डरें


ये संस्कृति के रक्षक

समाज के ठेकेदारों का फरमान है


और

इन उल्लू के पट्ठों के 

फरमानों को 

अपनी जूती की नोक पर रखने वाली 

हर औरत को मेरा सलाम है ।


-----------------------------------------//-राम जनम सिंह

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

भैस भवानी

 टम्पू की भैंस एक छाक 5 किलो दूध देती थी और दूसरे छाक भी 5 किलो । तो दिन मजे में गुजर रहे थे कि भैंसिया ने एक छाक दूध देने बन्द कर दिया । खूब प्रयास हुआ पर ऊं हूँ। कितनो हरियरी दिखा दिखा के नाचा गया कि राजी बोल जा पर भैंसिया राजी न हुई और दूध बस एक टेम ही देने लगी और रोज 5 किलो का घाटा । 2 दिन बीत गए । टम्पू को परेशान देख टम्पू की घरवाली ने श्यामा भगत को बुलाया ।श्यामा भगत भइसियों की भगतई में माना हुआ भगत था ।भैंस को चाहे जैसी समस्या हो श्याम भगत की नीम के लच्छो से की गई झाड़ फूंक से भैंसिया के सब रोग हवा और भइसिया टनाटन ।टम्पू यह टोना टोटका ढोंग धतूरा  पसंद न करते थे इसलिए श्यामा भगत को तब बुलाया गया जब टम्पू घर पर नही थे । श्यामा ने नीम के पत्ते लिए और भैंस के मोह पर कुछ बुदबुदाते हुए पत्तों से मुँह पर झारने लगा ।बीच बीच मे जब तेज स्वर में'  "  भैरों " बोलता तो मिसेज टम्पू हाथ जोड़ लेती .।श्रीमान टम्पू भी टैब तक न जाने कहाँ से घूमते फिरते आ गए थे । टम्पू बाबू को देख कर या वैसे ही थोड़ी देर बाद मंत्र जाप शांत हो गया और श्यामा भगत की नजरे टम्पू से चार हुई तो श्यामा ने महसूस किया कि उधर से आग की लपटें निकल रही हैं ।बहरहाल लपटें तो न आई पर एक कड़कती आवाज आई 

" काय रे का कर रओ" 

भैंसिया झार रहे ठाकुर 

टम्पू बाबू का हाथ जूते की तरफ जाता देख भगत जी एक दम से सकपकाते हुए बोले 

मोय टेरो गओ ठाकुर त्याये बड़े वाले लड़का गए थे,  और मैन देख लई है भैंसिया मेरी समझ मे आय गयी कि जे दूध एक छाक काए नही दे रही ।

टम्पू बाबू का हाथ जूते के पास सधा

काए नही दे रही

एक छाक को दूध हवा बयार पी जात

कौन सी बयार

त्याओ इ कोई पुरखा है 

टम्पू बाबू मुस्कुराए

ओ रे भगत जहाँ अइये

श्याम भगत डरते डरते आया ,टम्पू बाबू बोले

हमाये पिता जी ने अपने जीवन मे खूब दूध घी खाया इसलिए उन्हें तो कोई इच्छा बची नही थी । उनके पिता जी ने भी खूब दूध मठा खाया और उनकी भी कोई इच्छा बची नही होगी । झब्बू बाबा पेल के दारू पीते थे इसलिए उन्हें दूध से कोई मतलब नही था इसलिए अब तू भगतई से बता कि बो पुरखा कौन था नही तो जूता खाबे को तैयार हो जा ।

टम्पू बाबू का हाथ जूते की तरफ बढा की मिसेज टम्पू एक दम से चिल्ला पड़ी कि होय जान देव भगतई का पता सही ही हो जाए ।

टम्पू बाबू ने न चाहते हुए भी मौन स्वीकृति दे दी और श्यामा  भगत ने काले कपड़े में लपेट कर एक ताबीज भैस के गले मे बांध दिया ।ताबीज की फीस 250 रुपये औरएक देसी का पौआ ।

भैंस ने अगले दिन भी दूध एक छाक ही दिया तो टम्पू बाबू से रह न गया और बड़बड़ाते हुए पातीराम डॉक्टर को बुला लाये और मिसेज टम्पू से कहा कि अगर भैंस दूध नही दे एहि तो उसका कारण कोई बीमारी होगी डॉक्टर सही बतायेगा ।

डॉक्टर पातीराम ने भैस को देखा परखा और गंभीर मुद्रा बना कर बोले कि भाई भैस को कोई बीमारी नही है न बुखार है न कोई और बात 

तो दूध काहे नही देती

ऐसा करो,  डॉक्टर साहब बोले , किसी भगत को बुला लो


श्यामा भगत ने ताबीज दी है ।मिसेज टम्पू ने कहा

श्यामा से नही होगा 

तो फिर 

ऐसा करो किसी मुसलमान भगत को बुलाओ

उधर टम्पू बाबू  का हाथ जूते की तरफ बढ़ रहा था ।

शनिवार, 5 जून 2021

विक्रम बैताल 2

 विक्रम ने बैताल को कंधे पर लादा और चल पड़ा ।बैताल बोला सुन विक्रम मेरे दिमाग मे एक सवाल फिर से उछल रिया है ।और वो जे है कि भारत जैसे नीतिवान देश मे इतना कुछ अनैतिक होता रहता है लेकिन कोई कुछ नही बोलता । जब ऑक्सीजन की कालाबाजारी हुई तो मी लार्ड भी चिल्लाए की ऐसे आदमी को फांसी पे लटका दूंगा लेकिन वो अपने वकील के साथ मुस्कुराते हुए बाहिर निकल आया  ।

 

विक्रम बोला  चलो तुमको रामलीला दिखाते हैं । दोनो राम लीला पहुचे । रावण के दरबार में नर्तकी नाच रही है। उसके हाथ में माइक है कमर हिलाते हुए गा  रही है "परदेशियों से न अँखियाँ मिलाना "।गीत खतम होने पर लंकेश कुछ बोले इस से पहले उदघोसक माइक पर बोला " करिश्मा जी के नृत्य पर परसन्न होकर बब्बा कोल्ड स्टोर वाले नगेसर बाबू ने 501 का नगद इनाम और उनके जीजा ने नृत्य पर प्रसन्न होकर 1000 रुपया का नगद इनाम दिया है  ।नर्तकी ने एक शुक्रिया वाला छंद गाया और अपने ठुमके से धन्यवाद अदा किया। रावण पॉज मोड में बैठा है। 

विक्रम ने बैताल की तरफ देख कर कहा"" समझ मे आया बे जिसके बल से पृथ्वी डोलती है काल जिसके पलंग की पाटी से बंधा है नक्षत्र जिसके इशारे पर चलते हैं वह भी ऐसे किसी काम मे कौनो डिस्टरभेंस नही करता जिस से धन आता है और तुम हो कि हल्ला मचाए पड़े हो । पेड़ पर बैठ कर tv तो देखते होगे  tv वाले दिन रात एक पार्टी की  बिरुदावली गाते हैं जब देखो जुगल जोड़ी को जैक एंड जिल वेन्ट अप द हिल करते हैं ।क्यों करते हैं ?


-पैसा मिल रहा ।


हाँ और जब पैसा नही मिलेगा तो जैक फेल डाउन हो जाएगा ।


इतना सुनते ही बैताल बोला यार हम लोग फालतू ही सवाल जवाब करते रहते है , हमे भी कब बोलना और कब चुप रहना का कोई डिप्लोमा कर लेना चाहिए जिस से हममें यह तमीज आ जाए कि किस से सवाल पूछना है और तुम में यह इल्म आ जाए कि कैसे और किसे जवाब देना है आखिर हमें भी पैसों की जरूरत है  । और बोलते हुए फिर पेड़ पर जा कर बैठ गया ।


रविवार, 30 मई 2021


एक रहें ईन

एक रहें बीन

एक रहें फत्ते

और एक रहन हम


ईन कहेन अब वोट पड़ेगा

बीन कहेन न कोई न कहेगा

फत्ते कहेन है किलियर सीन

 चलौ गुरु जी लादौ टीन


हम बोला कि अबहीं ठहिरौ

अबै तो दद्दा रोग चलि रहा

ईन कहेन सब ठीक ठाक है

बीन कहेन बेमतलब डरि रहा

फत्ते बोले कसौ लंगोटी

चलौ करौ मतदान के ड्यूटी


हम का करतेन जाँय पड़ा फिर

ईन बीन फत्ते के खातिर

करैं प्रधानी बाबू भैया

सज्जन,पाजी, गुंडा शातिर


हमरे जैसे बहुत गुरु जी 

लई डिब्बा मतदान का धाये

वोट डलाइन ,गिनती कीन्हेंन

लइ बीमारी वापस आये

चढ़ा ताप औ खांसी आई

हुआ कॅरोना ,शोर मचाए

औषधि का सब भागे दौड़े

औषधि मिली न खटिया पाए

अस्पताल में बेड नही है 

दसौ दिशा औ चारौ धाम

खाली बेड रिज़र्व पड़े हैं

ईन बीन फत्ते के नाम


ईन बीन फत्ते का कीन्हेंन

अब आगे का सुनौ हवाल

तीनौ मिलि मैस्कॉट बनाएन

कैसे चीरा जावै माल

 ईन धरेन सब रेमडीसीवर

फत्ते लइ आक्सीजन भाग

बीन  जरा कमजोर रहैं तौ

एम्बूलेंस चलावैं लाग


ईन बीन फत्ते तीनौ की

भरीं  तिजोरी बारह पौ

लोकतंत्र की बलि वेदी पर

शिक्षक मरि गे सोलह सौ


ईन बीन फत्ते तीनौं मिल 

करेन घोषणा होगा न्याय 

हम सबको  हक दिलवाएँगे

बाकी कोई न रहने पाय


ओहिके बाद बन्द कर माइक

बोले फत्ते बीन और ईन

नहीं किसी को कुछ देना है

अपना धरम लेओ सब छीन

ईन कहेन अब मौत का मानक

करना है हमको तैयार

बीन कहेन कोउ कुछौ न पाई

फत्ते बोले जी सरकार


इन कहेन हम बड़े है दानी

बीन कहेन हम बड़े प्रवीन

फत्ते बोले सुनै जमाना

मास्टर मरे हैं केवल तीन


इस महामारी में चुनाव के कारण जान गंवाने वाले सभी शिक्षक गणों को श्रद्धान्जलि ।

---------राम जनम सिंह







जानते हो ये मोहब्बत कैसे करती है असर

 "जानते हो ये मोहब्बत कैसे करती है असर

आदमी हो आदमी से चूतिया हो जाओगे" 


आफाक की कहानी जारी है..


तो अफकवा का ज्यादा तर वक़्त शहनाज के साथ ग्राउंड की गैलेरी में बीतता और हमारा कैंटीन में ।  हम आफाक के पैसों से समोसा खाते और शहनाज बायरन ,मिल्टन ,शेक्सपीयर और कीट्स को समझते हुए उसका भेजा । 

और तीनों खुश थे ,

शहनाज भी ,

हम भी

 और आफाक भी 

और ईन बीन फत्ते के इस विन विन गेम में एक दिन खलल आ गया ।घोष बाबू जो कि अंग्रेज़ी के लेक्चरर थे ने एक दिन आफाक को शहनाज के साथ गैलरी में बैठे देख लिया । घोष बाबू भी आफाक की ही कद काठी के उनके सीनियर संस्करण से लगते थे । स्त्रियों से कुछ अतिरिक्त घृणा थी और उनका दृढ़ विश्वास था कि महान आत्माएं दुर्बल शरीर मे वास करती है और व्यक्ति तभी महान बनता है जब वह स्त्री की छाया से भी दूर रहे । पूर्व में इन दोनों कसौटियाँ पर खरे उतरने के कारण आफाक में वे जैसे भारत का भविष्य देखते थे । पर आज उन्होंने आफाक को शहनाज बेगम के साथ देख लिया था और कक्षा की तरफ जा रही उनकी देह में भीषण ताप का संचार हो गया था  और उनकी गति तेज़ हो गयी थी । 

क्लास में पहुच कर घोष बाबू ने चाक उठाया और कक्षा में प्रवेश करते हुए आफाक और शहनाज को कुछ पल घूरा और एकदम से पलट कर बोर्ड पर लिखने लगे ।


La Belle Dame sans Merci


वे पलटे उनकी नज़र आफाक पर ही थी । 

पढ़ो उन्होंने आफाक से कहा

आफाक मिनमिनाया

"ला बेले डेम सेंस मर्सी"


--क्या मतलब है इसका 


--The beautiful lady without mercy


घोष बाबू मुस्कुराए 

"लोग खूबसूरत स्त्रियों के पीछे पागल हो जाते हैं अपना भला बुरा भूल जाते है । 


प्रेम नारायण फिर फुसफुसाया " ई घोष बाबू का किसी से आंख नही मिला का?

किसी ने फुसफुसा कर जवाब दिया " इसका तरफ आंख उठा कर नही देखा किसी ने आंख क्या मिलेगा "

 हंसी आ गयी और घोष बाबू एक दम दहाड़े 


Is there anything to laugh?


 क्लास में फिर सन्नाटा छा गया

मेरे क्लास में मुझे डिसिप्लिन चहिए और वह  डिसिप्लिन मुझे अब दिखाई नही देता आफाक आलम सबसे ज्यादा पतन तुम्हारा हुआ है . 

आज क्लास कैंसिल रहेगा । मेरी तबियत आज ठीक नही है और वे तेजी से क्लास से बाहर निकल गए।

बाकी लोग भी निकल गए

आफाक सन्नपात की स्थिति में  बैठा था । गजेंदर ने आफाक के कंधे पर हाथ रखा। ""  चलो बे , जिल्ले इलाही चले गए और अनारकली भी निकल गयी तुम काहे जानी वाकर बने बैठे हो .।


--घोष बाबू गुस्सा हो गए. आफाक ने कहा


-और बैठो गैलरी में ।लाइब्रेरी में जाना था ,


--वहाँ लाइब्रेरियन बात नही करने देता है


---त साला इतना दिन हो गया बाते करते रहोगे ।लाइब्रेरी में पीछे की तरफ जो अलमारी है उधर निकल जाया करो किताब ढूंढने ,गजेंदर ने बायीं आंख दबाते हुए कहा


--कैसा बात करते है गजेंदर जी शहनाज ऐसी लड़की नही है


--शहनाज कैसी लड़की है ऊ त नही मालूम लेकिन तुमतो लड़का भी नही है 


क्या मतलब ?


--मतलब मोहब्बत करते हो न उससे


-- आफाक लजा गए आप भी क्या गजेंदर भाई


--सुनो ढेर नाटक मत करो ,सामने देखो ।लौंडिया को तुमसे मोहब्बत है या नही  इसको जांचने के तरीके ही यही है कि बढ़िया से ठोठ में ठोठ मिला कर चुम्मा ले लो ।चुम्मा मिल गया तो मोहब्बत पक्की और आनाकानी करे तो समझ लो तुम लोल हो ।और वह तुमको चिंटू बना कर गधा मजूरी करा रही है। मोहब्बत है तो मोहब्बत का मोहर लगना चाहिए ।


--कैसा बात करते है गजेंदर भाई मोहब्बत एक पाक लफ्ज़ है


---अच्छा भोसड़ी के 

तुम्हरी मोहब्बत पाक मोहब्बत

और जहां की झांट मोहब्बत

 लौंडिया चूतिया बना देती है यही सब अच्छा अच्छा बात बोलके .


गलत बात मत बोलिये ,जानते हैं शहनाज हमको ब्रूटस बोलती है .


ई कौन था बे?


जूलियस सीजर वाला । कल कह रही थी कि तुम मेरे भोले ब्रूटस हो लोग तुम्हारा फायदा उठा लेते है । 


गजेंदर  मुस्कुराया

 पुटुश जैसे हो और ब्रूटस बने का सपना घुसा हुआ है.


आप हम से जलते है गजेंदर भाई ।


बाकी किस्सा जारी है .......


शुक्रवार, 28 मई 2021

फ़िल्म


 अफाक मियाँ सैद्धांतिक तौर पर बड़े कट्टर किस्म के मुसलमान थे पर जब भी कोई सिनेमा का पोस्टर A मार्क के साथ लगता तो अफाक भाई उसकी चर्चा गजेंदर से जरूर करते । ऐसी ही किसी फिल्म का रंगीन पोस्टर लगा हुआ था । आफाक से रह न गया एक दम से फट पड़े ।


" देखिए अब कितना फालतू फ़िल्म लगता है  ।फिलिम तो एक ही ठो बना है आज तक मुग़ल ए आज़म । " 

मुगले आजम बोलते हुए नुक्ते को थोड़ा गाढ़ा जरूर कर दिया । शायद नुक्ता लगा कर बोलना वो अपना मजहबी फ़र्ज़ समझते थे ।


उस वक़्त भी उनकी निगाहें पोस्टर पर ही थीं । 

बताइए यह भी कोई फ़िल्म हुई उफ्फ ,उफ्फ । या खुदा फट जाए यह धरती और सम जाऊं में उसमे ।


गजेंदर बाबू खैनी मसलते हुए मुस्कुराए और अफाक से बोले 

" ,देखने चलेगा ? इस से बढियाँ वाला डुराण्ड में लगा है ।


- लाहौल विला कूवत। कैसा बात कर रहे है गजेंदर भाई ।ई सब फिलिम देखते हुए कोई देख लेगा तो क्या कहेगा ?


-- ए अफाक , करबा लड़बकई। खाली शेक्सपियर पढ़ने से नही होता है ।जीवन मे सेक्स नही होगा तो पीयर हो जाओगे। और शेक्सपियर भी कहते हैं "कावर्डस डाई मेनी टाइम्स बिफोर देयर डेथ" घुट घुट के मत जिओ , लोग के चिंता मत करो , लोगवा तबे न देखेगा तुमको जब उ खुद भी वहाँ होगा ।डराओ मत , चल सिनेमा देखे

 


और अफाक भाई घिसिया लिए गए 

साढ़े चार फिट की दुर्बल काया और धंसी हुई आंखों पर गोल चश्मा लगाये आफाक अक्सर 6 फिटे गजेंदर द्वारा घिसिया लिए जाते थे । पर थे दोनो पक्के यार

 

P k d का लेक्चर छूट जाएगा । आफाक ने कहा


चल रे । एको किलास गोल कर के सिनेमा भी नही देखा त जिंदगी अधूरी रह जाएगी । चल 

 आफाक ने कलेंजे पर पत्थर रखा , हिम्मत जुटाई थी और चले गए थे क्लास गोल करके । टिकट ले कर अंदर आये तो फ़िल्म शुरू हो गयी थी ।

गजेन्दर ने बगल में बैठे अधेड़ से पूछा " फिलिमियाँ कितना देर पहले शुरू हुआ चचा ?"


"अभी सीन नही निकला है " जवाब मिला ।


"इसको मालूम है कौन सीन " आफाक ने फुसफुसाते हुए पूछा 


गजेन्दर बाबू मुस्कुराए " हियाँ सब के मालूम है कौन सीन । तुमही बकलोल हो ।


बाद में सुना अफकवा भाग आया था ।पूरी फिल्म उस से देखी नही गयी थी ।


अगला किस्सा अब कल...