औरतें घरों में रहें
घर के काम करें
बच्चे पालें
दही जमाएं
मठा निकालें
रोटी चूल्हा चौका से आगे न सोचें
न हंसें न मुस्कुराएं
न नाचें गायें खुशियां मनाएं
क्योंकि हंसना सभ्यता के खिलाफ है
संस्कृति मटियामेट हो जाती है
औरतों के हंसने से
उनकी हंसी
ज्यादा घातक है
नाग के भी डसने से
और ये खेलना कूदना
और वह भी हॉकी और क्रिकेट
तौबा करो
बनाये तो हैं खेल गुड्डे गुड़ियों के
वे खेलें तो थोड़ी तमीज आए
बच्चे पालने की
वे बच्चे
जो चलाएंगे हम पुरुषों के वंश को
ये क्या दिन भर खी खी कर
खेल रही हैं खो खो
इन्हें रोको
ये खिलाफ है परंपरा के
की ये जो चाहे करें
किसी से न डरें
इन्हें डरना चाहिए
हम दे सकते हैं फतवा
की ये हैं चरित्र हीन
नाच रही हैं मैदान में
क्या अंतर रह गया है
इनमें और शैतान में
हमने पहले भी दिया है दण्ड
लगाए हैं कोड़े
क्योंकि हमी अदालत हमी दलीलें
और हम ही वो जिन्होंने
हर बार फैसला दिया
इन्हें क्या मालूम
कितनो को तो हमने डायन बताया
और जिंदा जला दिया
और ये नाच रही हैं खेल के मैदान में
हमारी आवाज़ पहुच जाए उनके कान में
कि वे अपने घरों की चारदीवारी में
सर ढक कर परदों में रहें
हँसना खेलना
नाचना गाना
खुशियां मनाना
सब भूल जाएं
जो हम कहें
वे वही करें
हमे अपना खुदा माने और
हमसे डरें
ये संस्कृति के रक्षक
समाज के ठेकेदारों का फरमान है
और
इन उल्लू के पट्ठों के
फरमानों को
अपनी जूती की नोक पर रखने वाली
हर औरत को मेरा सलाम है ।
-----------------------------------------//-राम जनम सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें