शनिवार, 29 अगस्त 2020

शेर अफ़ग़ान का मकबरा बर्धमान

 अकबर के समय एक आदमी ईरान से हिंदुस्तान आया जिसका नाम था मिर्ज़ा गयास बेग । सयाना था , दरबार मे काम मिल गया और उसकी बेटी अक्सर मुग़ल रानियों के साथ उनके बच्चों के साथ खेलने लगी । इस बेटी का नाम मेहरुन्निसा था । वहीं जहांगीर ने उसे देखा । लड़की खूबसूरत थी और होशियार भी और जहांगीर जो उस समय सलीम हुआ करते थे उनमे बड़े बाप की बिगड़ी औलादों वाले सारे अवगुण थे ।

दरबार की अपनी राजनीति होती है और राजनीति, व्यापार ,ठेकेदारी  में फायदा उठाने के लिए अक्सर औरतों का उपयोग होता रहा है । पहले भी चंद्रगुप्त मौर्य के समय मे हुआ था जब पर्वतराज की हत्या हो गयी थी आज कल भी हो ही रह है जैसे एक इंद्राणी मुखर्जी थी जैसे रिया चक्रवर्ती जैसे अन्य भी जिनके कारण संघ के एक प्रचारक  जी का काम तमाम हो गया था ।

बहरहाल हम बात कर रहे थे मेहरुन्निसा और सलीम की तो मेहरुन्निसा सलीम को पसंद आ गयी वैसे उन्हें हर तीसरी लड़की पसंद आ जाया करती थी उनके जनान खाने भरे पड़े थे औरतों से तो मेहरुन्निसा भी पसंद आ गयी । या ऐसा कहें कि घेर के पसंद करवा दी गयी मेहरुन्निसा सलीम को । कौन जाने मिर्ज़ा गयास बेग का ही ख्वाब रहा हो हिंदुस्तान की मुगलिया सल्तनत में अपना प्रभाव बढ़ाने का । बात जो भी रही हो पर जब सलीम ने मेहरुन्निसा से इज़हार ए इश्क़ किया तो उसने साफ कह दिया कि पहले निकाह कीजिये उसके बाद ही हम आपके होंगे । बात जिल्ले इलाही यानी सलीम मियाँ के बाप जलालुद्दीन अकबर तक पहुँची । अकबर इस तरह के हरामीपन और अपने लौंडे की चूतियापने को पूरी तरह समझता था । दरबार मे उन दिनों कई गुट थे, ईरानी ,तुरानी ,अफगानी और हिन्दोस्तानी ,राजपूत ... ढेर सारे ऐसा समझ लीजिए अटल बिहारी की 13 दलों वाली सरकार थी और किसी भी गट के नाराज होने का मतलब था कुर्सी या तख्त का खतरे में आ जाना ।राणा प्रताप चुनौती दे रहे थे और मिर्ज़ा गयास बेग की लौंडिया अगर सलीम से निकाह कर लेती तो दरबार मे ईरानियों का प्रभाव बढ़ना शुरू होता और राजपूत इसे बर्दाश्त नही करते और यदि ऐसे में जिल्ले इलाही की सरकार से समर्थन वापिस ले लेते तो राजपुताना हाथ से निकल जाता जो कि एक बड़ी त्रासदी होती अकेला राणा प्रताप ही धुंआ भरे हुए था मुगलों के बाकी के अलग होते तो फोगिंग मशीन चल जाती । तो मियाँ अकबर ने इस हरामीपन को भांप लिया कि मिर्ज़ा गयास बेग दिल्ली सल्तनत का बलबन बना चाहता है । अकबर ने सलीम साहब की एक न मानी सलीम बाबू खूब रोये चिल्लाए औरऊल ऊल के गिर गिर पड़े पर अकबर ने उनकी एक न सुनते हुए मेहरुन्निसा की शादी शेर अफ़ग़ान से करवा दी और शेर अफ़ग़ान का ट्रांसफर दूर के इलाके बंगाल की जागीर बर्धमान कर दिया गया । अली कुली बर्धमान आ गए और अपनी बीबी के साथ यहाँ रहने लगे पर मेहरुन्निसा का भारत की प्रथम महिला बनने और गयास बेग का उस हैसियत को पाने का ख्वाब जो मनमोहन सिंह की सरकार में सोनिया गांधी का था कहीं ज्यादा शिद्दत से देखा गया था ।तो बकौल शारुख खान जब आप शिद्दत से कुछ चाहे तो कायनात भी आपको व्व देने की साजिश करती है । अलीकुली बीबी के साथ मजे में दिन गुज़र रहे थे एक बेटी भी हो चुकी थी । उधर अकबर मियाँ भी कमजोर हो चुके थे सलीम ताकत पा रहे थे ईरानी गट उनके साथ था लिहाजा एक दिन उन्होंने बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन कोका जो कि रिश्ते में सलीम का भाई भी था से अलीकुली को पकड़ कर लाने का हुक्म फरमाया । अलीकुली ने इस पर ऐतराज जताया और एक छोटा सा युद्ध जिसे युद्ध के स्थान पर झड़प या मुठभेड़ दोनो में हुई और बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन और बर्धमान के दुर्गाधिपति शेर अफ़ग़ान दोनो मारे गए ।सलीम को अपनी सल्तनत के एक और प्रतियोगी से निजात मिली और नूरजहाँ को साम्राज्ञी बनने की राह में रोड़े शेर अफ़ग़ान से। मेहरुन्निसा अपनी बेटी के साथ दोबारा से सलीम के जनानखाने पहुंच गई ।मिर्जा गयास बेग एत्मादुद्दौला के ख़ितब से नवाजे गए और कुछ दिनों बाद जहांगीर ने मेहरुन्निसा से बाकायदा निकाह किया और मेहरुन्निसा को नूरजहाँ के नाम से जाना जाने लगा । फिर ये भी सुना जाता है कि जहांगीर ने एक प्याला शराब के लिए पूरा हिंदुस्तान नूरजहाँ के क़दमो में रख दिया । 

खैर मेरे पीछे जो इमारत देख रहे हैं वह नूरजहाँ के उसी बदकिस्मत पहले पति शेर अफ़ग़ान की कब्र पर बना एक छोटा सा मक़बरा है ।

अब नूरजहाँ और मुमताज की कहानी फिर कभी


मंगलवार, 18 अगस्त 2020

वराह मिहिर की वेधशाला

 दिल्ली की कुतुब मीनार कहते हैं कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया और  सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इसे कुतुब मीनार नाम दिया । सच्चाई है या नही, नही पता क्योंकि कहा यह भी जाता है कि यह स्थान गुप्त वंश के शासन काल मे चंद्रगुप्त विक्रम दित्य के नव रत्न में से एक वराह मिहिर की वेध शाला थी और इसे गरुण स्तम्भ कहा जाता था  ।मिहिरावली नाम का शहर उसी वराह मिहिर के नाम से बसाया गया था जो आज मेहरौली के नाम से पुकारा जाता है ।इस काम्प्लेक्स में 27 मंदिर थे जो ग्रहों और नक्षत्रों को समर्पित थे ।  विदेशी लुटेरों के हमले ने भारत की कला ,स्थापत्य, धर्म और संस्कृति का बेहद नुकसान किया ।इस काम्प्लेक्स को भी ध्वंश किया गया और इस्लाम की ताकत दिखाने के लिए उन्ही ध्वंसावशेषों पर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बना दी गयी । 

खैर हम बात कर रहे थे वराह मिहिर की वराह मिहिर का जन्म उज्जैन के समीप 'कपिथा गाँव' में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता आदित्यदास सूर्य के उपासक थे। उन्होंने मिहिर को (मिहिर का अर्थ सूर्य) भविष्य शास्त्र पढ़ाया था। मिहिर ने राजा विक्रमादित्य के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष की आयु में होगी, यह भविष्यवाणी की थी। हर प्रकार की सावधानी रखने के बाद भी मिहिर द्वारा बताये गये दिन को ही राजकुमार की मृत्यु हो गयी। राजा ने मिहिर को बुला कर कहा, 'मैं हारा, आप जीते'। मिहिर ने नम्रता से उत्तर दिया, 'महाराज, वास्तव में मैं तो नहीं 'खगोल शास्त्र' के 'भविष्य शास्त्र' का विज्ञान जीता है'। महाराज ने मिहिर को मगध देश का सर्वोच्च सम्मान वराह प्रदान किया और उसी दिन से मिहिर वराह मिहिर के नाम से जाने जाने लगे। भविष्य शास्त्र और खगोल विद्या में उनके द्वारा किए गये योगदान के कारण राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने वराह मिहिर को अपने दरबार के नौ रत्नों में स्थान दिया।


वराह मिहिर की मुलाक़ात 'आर्यभट' के साथ हुई। इस मुलाक़ात का यह प्रभाव पड़ा कि वे आजीवन खगोलशास्त्री बने रहे। आर्यभट वराहमिहिर के गुरु थे, ऐसा भी उल्लेख मिलता है। आर्यभट की तरह वराह मिहिर का भी कहना था कि पृथ्वी गोल है।ये तब की बात है जब यूरोप में लोग नंगे जंगलों में घूम करते थे और अर्धमानव से ज्यादा कहलाने योग्य न थे । 17 वीं सदी में जब गैलीलियो ने कहा था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तब उसे दंडित किया गया था और उसके कथ्य को अवैज्ञानिक मानते थे गोरे ।और  न्यूटन से सदियों पहले वराह मिहिर ने गउरुत्वाकर्षण बल के विषय मे बताया था । उन्होंने कहा था  कि सभी वस्तुओं का पृथ्वी की ओर आकर्षित होना किसी अज्ञात बल का आभारी है। 

उन्हें विशेष रूप से यह जानना चाहिए जो समस्त ज्ञान के लिए पश्चिम की ओर देखते हैं और मानते हैं कि अगर अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल न होते तो उनके बच्चों का जीवन अधूरा रह जाता ये तो अंग्रेज़ थे जिन्होंने हमे तमीज़ और तहज़ीब सिखाई ।

खैर हमे अपने इतिहास और ऐतिहासिक स्थलों के विषय मे जानने के लिए घर से निकलना पड़ेगा ।पुराने ग्रंथों और स्मृतियों का अध्यन करना पड़ेगा । अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भरिय भाषाओं का अध्यन करना पड़ेगा क्योंकि भारत का ज्ञान और संस्कृति का आधार भाषाएं है ,भारतीय दंत कथाओं और प्रचलित किस्सों का तार्किक विश्लेषण करना पड़ेगा शायद हम तभी अतुल्य  भारत को जान पाएंगे ।

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

बिहार चला बबुनी

छपरा सिवान बिहार
बिहार गए हैं कभी ।भाई हमको तो अच्छा  लगता है।यहाँ के लोग, यहाँ का लिट्टी और भूजा ।पूरी सब्जी और जिलेबी (जलेबी कतई नही)  यहां का खाना पीना (जब भी खाना पीना कहता हूँ तो लालमुनि गुस्सा हो जाता है कहता है पीने के बात मत कीजिये नीतीश बाबू बलजबड़ी पीना बन्द करवा दिए हैं)
मन मोह लेगी यहाँ की बोली की मिठास और राह चलते हास परिहास ।शारदा सिन्हा से लेकर गुड्डू रंगीला और गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो से लेकर होली में के खोली तक। सब कुछ बेहद अपना सा ।
बिहार के इस हिस्से में मैंने कुछ दिन बिताये हैं ।यहां के बुजुर्गों से बात करना शुरू कीजिये तो वे बड़े गर्व से बताते हैं की jp के आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था । कैसे वो जनता को एकत्र करते थे और भ्रष्ट व्यवस्था को पूरी तरह उखाड़ फेंका था ।
 ये इलाका आज भी विकास से बहुत दूर है । नसड़कें न साफ पानी न रोजगार । कच्चे मकानों की ढेर सारी बस्तियाँ । आर्थिक विषमता बौद्धिक जड़ता और कैसे भी सडे गले के साथ निभा लेने की समझोता वादी सोच । सब ने अपना डेरा जमाया हुआ है । ये वही इलाका जहाँ संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति ने जन्म लिया था । मुझे लगता है जो ऊर्जा इन बुजुर्गों ने JP के आंदोलन के लिए लगाई थी  उसकी आधी ऊर्जा भी वो सिर्फ अपने गाँव की बेहतरी में लगा देते और उन्ही तेवरों के साथ जो उन्होंने JP से सिखा था तो तस्वीर कुछ अलग ही होती।
 बिहार के जिले सिवान में हूँ । उपजाऊ क्षेत्र है व्यवस्थाएं बंजर हैं । इलाका एमसीसी माओवादी चरमपंथियों का गढ़ रहा है नरसंहार  होते रहें हैं ।इलाका बाहुबली शहाबुद्दीन के के लिए भी कुख्यात रहा है । ठिकाने तक पहुचाने वाले अपनी गाडी के ड्राइवर से जब पूछा  'अब तो शांति है ?'
 जवाब मिला 'अलबत्त बात करते हैं जी सिवान में मर्डर कहियो बंद नही होता है ।'
 विकास नाम के जीव से लोग अभी परिचित नही हैं। पिछली पीढ़ी के लोग शान से बताते हैं कि उन्होंने जे पी के आंदोलन में भाग लिया था पर वर्तमान पीढ़ी में सड़ी गली व्यवस्था और पिछड़ेपन से विद्रोह खत्म सा दिखता है। लोग तथाकथित नेताओं के करीबी बनना चाहते हैं रौब बना रहे और  कुछ सरकारी योजनाओं में बिचौलिया बन सकें ।
 राजनैतिक चेतना तो है पर हिम्मत कम होती जा रही है ।सुबह सुबह गांव के लड़के दंड बैठक करते हुए और दौड़ लगते हुए दिख जाएंगे। बहाली की तैयारी है ।
एक तस्वीर में जो पीपल का पेड़ देख रहे हैं वो सिर्फ पीपल का पेड़ नही है। गांव के स्थान देवता हैं पहलवान जी । कहते हैं कि मनौती पूरी होने पर पहलवान जी पर लाल लंगोट और शराब का पौआ चढ़ाना पड़ता था । 
पहलवान जी(पीपलका पेड़) के नीचे बैठे गाँव के तेज बहादुर के अनुसार " नितिशवा जब से दारू बंद किया है पहलवान जी खाली लाल लंगोटा ही डोलाते रहते हैं ।

लोगों ने बताया कि पास ही गंगा व सरयू नदी के संगम है और यह स्थल .महर्षि गौतम और ऋषि श्रृंगी की भी तपोभूमि रही है। गौतम ऋषि भी सप्तर्षियों में माने गये हैं। कहा जाता है कि गौतम ऋषि मिथिला नरेश जनक जी की सभा में अपने पुत्र सतानंद जी को स्थापित करने के बाद अपनी धर्मपत्‍‌नी अहिल्या तथा पुत्री अंजनी के साथ इस स्थान पर आये तथा इसे अपनी तपोभूमि बनाया। माता अंजनी हनुमान जी की माता थीं इस कारण इस स्थान को हनुमान जी का ननिहाल होने का भी गौरवशाली इतिहास है।
कथा है कि देवताओं का राजा इन्द्र ने छल से ऋषि पत्नि अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया गौतम को जब जानकारी हुई तो उन्होंने देवराज के साथ अहिल्या को भी इसके लिए दोषी माना और शाप दिया अहिल्या पत्थर के समान जड़ हो गयी । भावनाओं से शून्य हो गयी होंगी शायद ,हैरान रह गयी होगी कुछ इन्द्र के छल से कुछ अपने पति के उसके प्रति अविश्वास से ।और फिर राम के चरण पड़े यहां और अहिल्या को छूते ही शायद वात्सल्य जाग पडा  होगा और अहिल्या वापस सामान्य जीवन की तरफ लौट पड़ी होंगी । 
संयोग से उसी पावन भूमि पर गंगा और सरयू के संगम के समीप मर्यादा पुरुषोत्तम राम की महिमा को याद करते हुए स्वयं को धन्य पाता हूँ ।
ईश्वर से प्रार्थना बिहार में बहार आये ।