बेसिक शिक्षा का नया सत्र। ढेर सारी चहल पहल। रैलियां, नारे ,अफसरों के भासण , शिक्षकों के संकल्प ,अख़बारों की धमाचौकड़ी सब कुछ है। पर पिछले साल की ही तरह उन सब स्कूलों को अनदेखा कर दिया गया जहा शिक्षकों की कमी थी साथ ही उन्हें भी जहाँ जरूरत से ज्यादा शिक्षक थे। हर गाँव में सरकारी स्कूल होने के बावजूद कुकुरमुत्तों की तरह शिक्षा दलालों की दुकानों को पनपने का भरपूर मौका इस बार भी दिया जाएगा। मुँहलगों को स्कूल के समय में शिक्षा अधिकारीयों के दफ्तरों में इस बार भी मनोरंजन करते देखा जा सकेगा। और अंत में शिक्षा में आई गिरावट पर गंभीर चिंतन करेंगे शाह -ए - बेखबर और फिर एक सत्र समाप्त हो जाएगा।