गुरुवार, 13 मार्च 2014

माना आँगन धूप भरा है पर मुट्ठी भर छाया भी है


माना आँगन धूप भरा है 

पर मुट्ठी भर छाया भी है


माना ढेरों सपने टूटे 
अपने और बेगाने रूठे
मंजिल की तलाश में 
जाने कितने ठौर ठिकाने छूटे

उलझन के झुरमुट में
अक्सर ही किरणों के हिरन फंसगए
अंतर में थी पीर भयंकर
लेकिन फिर भी अधर हंस गए

ढहते प्राणों के तट ने जाने कितने आघात सहे हैं
अनजाने भविष्य के सपने
लहरों संग दिन रात बहे हैं

माना रात बहुत लम्बी है
और बहुत है दूर सवेरा
पर सब सपने सच्चे होंगे
कहता है अंतर्मन मेरा

माना बहुत बहुत खोया है
पर थोडा कुछ पाया भी है

माना आँगन धूप भरा है
पर मुट्ठी भर छाया भी है ,,,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें