माना आँगन धूप भरा है
पर मुट्ठी भर छाया भी है
माना ढेरों सपने टूटे
अपने और बेगाने रूठे
मंजिल की तलाश में
जाने कितने ठौर ठिकाने छूटे
उलझन के झुरमुट में
अक्सर ही किरणों के हिरन फंसगए
अंतर में थी पीर भयंकर
लेकिन फिर भी अधर हंस गए
ढहते प्राणों के तट ने जाने कितने आघात सहे हैं
अनजाने भविष्य के सपने
लहरों संग दिन रात बहे हैं
माना रात बहुत लम्बी है
और बहुत है दूर सवेरा
पर सब सपने सच्चे होंगे
कहता है अंतर्मन मेरा
माना बहुत बहुत खोया है
पर थोडा कुछ पाया भी है
माना आँगन धूप भरा है
पर मुट्ठी भर छाया भी है ,,,
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