स्त्री विमर्श के सन्दर्भ में महादेवी वर्मा का साहित्य
महादेवी का साहित्य नारी के शोषण, उसकी पीड़ा ,,,उसके बंधन और इन सबका प्रतिकार करते हुए उसकी हिम्मत और उसकी वयक्तिक क्रांति का साहित्य है .
उनका साहित्य 'स्त्री जीवन पर एक नारी लेखिका की सहानुभूति मात्र नही वरन एक गंभीर विश्लेषण भी है'
महादेवी का स्त्री विमर्ष उनकी कविता की अपेक्षा रेखा चित्रों, संस्मरणों और निबंधों में अधिक मिलता है. डॉ सूर्य प्रकाश दिक्षित के शब्दों में" नारी जीवन और समसामयिक जीवन बोध विषयक उनका चिंतन जब काव्य बद्ध न हो सका तो उन्हें गद्य का आश्रय लेना पड़ा
महादेवी का स्त्री विमर्श उनके आलेखों युद्ध और नारी ,,आधुनिक नारी,,घर और बहार,,,स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न ,,,,उनके संस्मरणों रेखा चित्रों और कही कही कविताओं में दिखाई पड़ता है।
समाज स्त्री को ,,,उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार नही करना चाहता ,,,पुरुषवादी समाज ये मानता है की स्त्री का कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व नही उसकी कोई पुकार नही,,उसका कोई होना नही स्त्री की स्थिति एक गुलाम की तरह है जो सिर्फ पुरुह के पीछे पीछे चलती है
स्त्री शोषण का यह जाल सदियों से चला आ रहा है पुरुष स्त्री सब कुछ थोपता रहा है चाहे नियम कानून हों ,,,या रीती रिवाज यहाँ तक की स्त्री को दिए गए अधिकार भी सब कुछ उस पर थोपा ही गया है ..
महादेवी श्रंखला की कड़ियाँ में लिखती हैं "आदिम युग से सभ्यता के विकास तक्स्त्री सुख के साधनों में गिनी जाती रही .......पुरुष ने उसके अधिकार अपनी सुख की तुला पर तौले उसकी विशेषता पर नही
महादेवी की रचनाओं के स्त्री पात्र समाज द्वारा उपेक्षित व तिरष्कृत हैं चाहे वो गुंगिया हो,,,भक्तिन हो बिबिया हो या मुन्नू की माई हो या चीनी फेरे वाले की अभागिनी बहन .... ये सभी सर्व हारा हैं इनके पास इनका अपना कहने को कुछ भी नही ....न धन संपत्ति न घरबार न रूप रंग का अभिमान न मत पिता यह तक की अपना नाम भी नही और समाज द्वारा पग पग पर ये छले जा रहे हैं पग पग पर इनका शोषण हो रहा है
चाहे गुंगिया को उसके पिता पति व पुत्र के द्वारा छले जाना हो या बिबिया की जिजीविषा के दम तोड़ देने की कहानी भक्तिन की कथा हो या मुन्नू की मई की सब तरफ समाज का एक स्त्री के प्रति दोयम दर्जे का व्यव्हार ही दिखाई पड़ता है
महादेवी का साहित्य " इस शोषक समाज में संवेदनशील व्यक्ति की तथा एक नारी की वेदना है ,,,,महादेवी के संस्मरणों में नारी की मूक पीड़ा को प्रखर अभिव्यक्ति मिली है उन्होंने नारी की वेदना उसकी उसकी आकुल छात्पताहत उसकी पराधीनता को शब्द बढ करते हुए उसकी गरिमा को रेखांकित किया है
चीनी फेरीवाला में वैश्या जीवन की त्रासदी के संकेत मिलते हैं इस जीवन की पीड़ा को व्यक्त करते हुए वे लिखती हैं " यदि स्त्री की ओर देखा जाए तो देखने वाले का ह्रदय काँप उठेगा ....उसके ह्रदय में प्यास है परन्तु उसे भाग्य ने मृग मरीचिका में निर्वासित कर दिया है…उसे जिंदगी भर सौंदर्य की हट लगनी पड़ी ,, अपनी ह्रदय की समष्ट कोमल भावनाओं को कुचल कर आत्म समर्पण की साडी इच्छाओं को गला घोंट कर रूप का क्रय विक्रय करना पड़ा और परिणाम में उसके हाथ आया निराश हताश और एकाकी अंत
नारी के सामने एक बहुत जटिल समस्या रही है आर्थिक स्वतंत्रता की और जब तक स्त्रियाँ अर्थी रूप से स्वतंत्र नहीं है ,,,जब तक उनकी कोई अर्थगत ,,सम्पत्तिगत स्थिति नहीं है तब तक स्त्रियों की समानता और उनके अधिकारों की बात सिर्फ निठाल्ला चिंतन ही है
महादेवी लिखती हैं स्त्री के जीवन की अनेक विवशताओं में प्रधान और कदाचित उसे सबसे अधिक जड़ बनाने वाली अर्थ से सम्बन्ध रखती है और रखती रहेगी
समाज ने स्त्री को घर के भीतर बंद कर दिया है उसे आर्थिक रूप से पंगु कर दिया है
महादेवी लिखती हैं पुरुष ने स्त्री को घर में प्रतिष्टित कर उसे जड़ता सिखाने का प्रयत्न किया है
उन का मानना है " जिन स्त्रियों की पाप गाथाओं से समाज का जीवन कला है जिनकी लज्जा हीनता से जीवन लज्जित है नमे अधिकांस की दुर्दशा का कारण अर्थ की विषमता ही मिलेगी
महादेवी का साहित्य सिर्फ नारी वेदना का ही साहित्य नही , दुःख और करुणा का ही साहित्य नही है वे औरत की एक जगह समाज मेंबनाती हैं ,,उस औरत की जो समाज में नितांत उपेक्षित है यह जगह करुनामय तो है पर करूँ नही दया की पात्र नहीं ,,निरीह नही
महादेवी का साहित्य केवल करुन और दुःख का ही साहित्य नही है यह नारी क्रांति का भी साहित्य है यह सिर्फ विद्रोह भर नही है ,,,,विद्रोह सिर्फ पुराने व्यक्तित्व को है और क्रांति है नए की सृष्टि
महादेवी की स्त्रियाँ स्वाभिमानी हैं और अपने अधिकारों के प्रति सजग भी ,,,,उनके व्यक्तित्व में करुन और क्रांति गुंथी हुई है ,,,महादेवी ने लिखा है "स्त्री के व्यक्तित्व में कोमलता और सहानुभूति
के साथ साहस तथा विवेक का ऐसा सामंजस्य होना आवश्यक है जिस से ह्रदय के सहज स्नेह की वर्षा करते हुए हुए भी वह किसी अन्याय को प्रश्रय न दे कर अपने प्रतिकार में तत्पर रह सके
बिबिया के स्वाभिमान पर जब चोट पड़ती है तब वह पति पर चिंता उठा कर फेक देती है और इस चिमटे के प्रहार का स्मरण ही रमई कोहिम्मत नहीं दे पता की वह बिबिया को जुए के दांव पर रख सके
बी इबिया स्पष्ट घोसणा करती है वह कोई गाय बछिया नही है की उसे कसाई के हाथों बेंच दिया जाए या दान कर दिया जाए
मुन्नू की मई को हम समाज की रुढियों को तोड़ कर अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए मजदूरी करते हुए पाते हैं
भक्तिन समाज के किसी बहकावे में आने वाली नहीं है उसे अपने भले बुरे की पहचान है और वह अपनी बेहतरी के लिए प्रयास रत भी है
महादेवी के अनुसार ऐसे ही देशव्यापी आन्दोलन की जरुरत है जो सबको सजग कर दे
महादेवी के स्त्री विमर्श की सबसे खास बात है की वह स्त्री और पुरुष को काट कर अलग नही करती और स्त्री स्वतंत्रता को सिर्फ दैहिक स्वतंत्रता तक ही सिमित नहीं करती ,,,,डॉ राजेंद्र गौतम के अनुसार ' महादेवी ने स्त्री के हक के लिए जो आवाज उठाई है उसमे दृढ़ता तो है ,,,जड़ संस्कारों पर चोट भी है पर उनका स्त्री विमर्श पुरुष द्वेषी नहीं है ..उसमे ग्रीन का स्थान नहीं है ,,,उद्दाम भोग की मांग नहीं है अर्थात नारी की देहवादी परिभाषा उन्हें स्वीकार नहीं है
महादेवी की नारी पुरुष होने की दौड़ में नहीं है वह अपने व्यक्तित्व की स्वीकृति चाहती है और यह स्वीकृति वह किसी से दान में नहीं चाहती बल्कि हासिल करना चाहती है ,,,इसे हासिल करने की प्रक्रिया से गुजरना हहती है ,,,और इसमें जो संघर्ष है उससे वह पूरी आस्था और निष्ठां से संघर्षरत है
महादेवी का नारी विमर्श एक नारा नही है यह नारी की समस्याओं से रूबरू होने उनसे जूझने और जूझते हुए समाधानों को निकलने के प्रयास की ओर संकेत करता है
महादेवी की नारी संघर्ष शील है ,,,वह अपनी पीड़ा दुःख और दमन से टूटी नहीं है वह इन सभी के बीच न सिर्फ पूरी जीवन्तता से जी रही है बल्कि इस शोषण और दमन से मुक्ति का मार्ग अपने दम पर ढूंढ रही है ---------------राम जनम