रविवार, 17 मार्च 2019

सोनचिरैया

सोनचिरैया
शेक्सपियर की ट्रैजेडी जैसी फील देती एक फ़िल्म ।  
पश्चाताप, मुमुक्षा की कोमलता और आध्यात्मिकता का स्पर्श देती कहानी जिसे बीहड़ की कठोरता और बंदूकों के कर्कश स्वरों में फिल्माया गया । चम्बल की घाटी जहां ज्यादातर फैसले बंदूक लिखती है जहां एक ही सिद्धांत है " जो खलीफा बनेगा ____पर गोली खायेगा" ।1970-80 के दशक के दुर्दांत बागियों के निर्दयी जीवन के कोमलता,उनके सिद्धांतों और कठोर शरीर मे छिपे कोमल हृदय के पक्ष को उजागर करती है फ़िल्म ।
 चम्बल घाटी को और वहां के बागियों को जाने बगैर जिस तरह से उनके बारे में राय रखी जाती है उस पर व्यंग्य करते हुए फ़िल्म का एक संवाद देखिये
" कैसी है जा फिलम ,बागी का बदला ।
उल्लू पना की बातें है , कहूँ घोड़न पे आत हैं बागी ।"
उन्ही निर्दयी और कठोर बागियों जो जान  लेना और देना खेल समझते है से कुछ बच्चों पर अनजाने में गोली चल जाने का एक ऐसा पाप हो जाता है जिस से मुक्ति की छटपटाहट  उन्हें चैन से जीने नही देती ,  अंदर के शोर को दबाने की कोशिश ही शायद निर्देशक द्वारा चलवाई गयी वो गोलियां है जो हर दूसरे मिनट पर कहानी में चलती हैं ।पूरी फिल्म में एक तनाव है जो समानांतर चलता है ।यह फ़िल्म यह भी सोचने को विवश करती है कि क्या डाकू वही हैं जो जंगलों में बंदूक लिए फिरते हैं या वो सफेद पॉश भी जिन पर हम भरोषा करते हैं ।
फ़िल्म अपराध पर नही बल्कि अपराध बोध पर है और प्रकृति के उस कानून पर मोहर लगाती है  की जो दुनिया को दोगे बदले में वही मिलेगा  एक संवाद देखिये
चूहा सांप को खायेगा सांप को खायेगा गिद्ध...कह गए साधू सिद्ध ।
फ़िल्म में जातियाँ हैं , गालियाँ हैं नारी स्वतंत्रता की भावना है पर सब कुछ अपने वास्तविक रूप में है कृत्रिम और थोपा नही इस लिए बुरा नही लगता । फ़िल्म में मनोज वाजपेयी ,सुशांत सिंह राजपूत भूमि पेडनेकर आशुतोष राणा और बाकी सभी अभिनेता अपनी भूमिकाओं से न्याय करते दिखे हैं परंतु सबसे ज्यादा अगर कोई अपने अभिनय से आपका ध्यान खींचता है जो है वकीला के रोल में रणवीर शौरी,
फ़िल्म अच्छी है ।पात्र भिंड ,मुरैना की बोली में बोलते हैं यदि आप इसे समझ नही पाते तो अंग्रेज़ी सब टाइटल है पर वो ध्यान ही भटकाते है ।
 अवश्य देखिये