गुलाब गैंग
माधुरी दीक्षित व जूही चावला कि फ़िल्म।
कहानी में एक दीदी है रज्जो जिसे पढ़ने कि जिद थी बचपन में और तमाम अवरोधों के बावजूद उसने पढाई की जहाँ तक वो कर सकती थी गांव के किनारे उसका एक आश्रम है जहां सामाज की सताई हुई औरतों को सहारा मिलता है और बालिकाओं कि सिक्षा होती है
आश्रम के बाहर है छल प्रपंच लालच अन्याय अत्याचार असमानता और स्वार्थ कि राजनैतिक और सामजिक दुनिया। रज्जो इन सबसे लड़ती है कई मोर्चों पर अपने सहयोगियों के साथ ,गुलाबी साडी पहने हुए कुछ औरतें जो जानती हैं कि जब हक़ की बात समझ में ना आये हक़ मारने वालों को तो फिर डंडा सबका पीर होता है। rod is god . और फ़िल्म में दूसरी ऒर है एक महिला राजनैतिज्ञ जिनके लिए ज़िन्दगी सिर्फ किस्मत और टाइमिंग का खेल है।
पर अंत तक ये फ़िल्म एक बिखरी बिखरी सी फ़िल्मही लगती है। अंत तक कहानी से तादात्म्य नहीं बैठ पाता।
फ़िल्म एक साथ बहुत कुछ समेटने के चक्कर में बिखर जाती है।
निर्देशक ने दृश्य बहुत अच्छे बुने हैं पर उन्हें एक दुसरे में सही तरह से जोड़ने में असफल ही दिखाई देता है।
फ़िल्म में संगीत अच्छा है। एक्शन प्रभावित करता है कुछ दृश्य तो बेहद रोमांचक है एक्शन वाले। माधुरी एक्शन करते हुए कही कही दुर्गा सी दिखती है।
फ़िल्म का कथानक अगर बिखरा हुआ न होता और एक निर्धारित दिशा कि ऒर चलता तो ये फ़िल्म और भी बेहतर हो सकती थी।