शनिवार, 16 सितंबर 2017

महा श्मशान काशी

काशी को महाश्मशान कहा जाता है ।कहते हैं कि माता पार्वती के कान से गिरी बाली को किसी ने यहाँ चुरा लिया और जब शिव को यह बात पता चली तो उन्होंने यहाँ के निवासियों को श्राप दिया कि इस कुकृत्य के बदले यह स्थान श्मशान में परिवर्तित हो जाएगा ।सभी घबरा गए और शिव का क्रोध शांत होने तक प्रार्थनाएं करने लगे ।शिव का क्रोध जब शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि यह शमशान तो होगा परंतु मैं यहां स्वयं निवास करूँगा और यहाँ शरीर त्यागने वाला मेरी शरण को प्राप्त करेगा ।
तब से यहाँ असंख्य चिताएं जल चुकी है परंतु मृत्यु का उत्सव मनाने वाला यह स्थान अनूठा है । कम लोग एक परंपरा की जानकारी रखते हैं कि वर्ष में एक बार यहाँ जलती चिताओं के मध्य वैश्याएं नृत्य करती हैं ।उनका मानना है कि उन्हें उनके नारकीय जीवन से मोक्ष मिलेगा।
यह परंपरा अकबर के समय से प्रारंभ हुई मानी जाती है। तत्कालीन समय मे जब राजा मान सिंह ने मणिकर्णिका घाट का जीर्णोद्धार करवाया तो वे इस अवसर पर किसी ख्याति प्राप्त कलाकार द्वारा घाट पर कार्यक्रम आयोजन करवाना चाहते थे कोई भी प्रसिद्ध कलाकार तैयार न हुआ  ऐसे समय मे बनारस की नगर बधुएँ पैरों में घुंघरू बांध आईं और जलती चिताओं के मध्य नृत्य किया।यह तब से ही जारी है। शायद यह एकमात्र शहर होगा जहां शव दाह करने पर टैक्स मुर्दा जलाने वाले डोम को देना पड़ता है और यहाँ मुर्दा जलाने वाला डोम  डोम राजा कहा जाता है । काशी के लोग अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि काशी में दो राजा है एक तो काशी नरेश और दूसरे डोम राजा। एक गंगा के इस पर और दूसरे उस पार और डोम राजा बड़े हैं क्योंकि काशी नरेश को भी कभी न कभी डोम राजा के घर आना ही पड़ता है ।
बनारस मृत्यु का शहर है , मस्ती का भी ,उत्सव का भी और मृत्यु के सामने अट्टहास कर उत्सव मनाने का भी
हर हर महादेव