शनिवार, 29 अगस्त 2020

शेर अफ़ग़ान का मकबरा बर्धमान

 अकबर के समय एक आदमी ईरान से हिंदुस्तान आया जिसका नाम था मिर्ज़ा गयास बेग । सयाना था , दरबार मे काम मिल गया और उसकी बेटी अक्सर मुग़ल रानियों के साथ उनके बच्चों के साथ खेलने लगी । इस बेटी का नाम मेहरुन्निसा था । वहीं जहांगीर ने उसे देखा । लड़की खूबसूरत थी और होशियार भी और जहांगीर जो उस समय सलीम हुआ करते थे उनमे बड़े बाप की बिगड़ी औलादों वाले सारे अवगुण थे ।

दरबार की अपनी राजनीति होती है और राजनीति, व्यापार ,ठेकेदारी  में फायदा उठाने के लिए अक्सर औरतों का उपयोग होता रहा है । पहले भी चंद्रगुप्त मौर्य के समय मे हुआ था जब पर्वतराज की हत्या हो गयी थी आज कल भी हो ही रह है जैसे एक इंद्राणी मुखर्जी थी जैसे रिया चक्रवर्ती जैसे अन्य भी जिनके कारण संघ के एक प्रचारक  जी का काम तमाम हो गया था ।

बहरहाल हम बात कर रहे थे मेहरुन्निसा और सलीम की तो मेहरुन्निसा सलीम को पसंद आ गयी वैसे उन्हें हर तीसरी लड़की पसंद आ जाया करती थी उनके जनान खाने भरे पड़े थे औरतों से तो मेहरुन्निसा भी पसंद आ गयी । या ऐसा कहें कि घेर के पसंद करवा दी गयी मेहरुन्निसा सलीम को । कौन जाने मिर्ज़ा गयास बेग का ही ख्वाब रहा हो हिंदुस्तान की मुगलिया सल्तनत में अपना प्रभाव बढ़ाने का । बात जो भी रही हो पर जब सलीम ने मेहरुन्निसा से इज़हार ए इश्क़ किया तो उसने साफ कह दिया कि पहले निकाह कीजिये उसके बाद ही हम आपके होंगे । बात जिल्ले इलाही यानी सलीम मियाँ के बाप जलालुद्दीन अकबर तक पहुँची । अकबर इस तरह के हरामीपन और अपने लौंडे की चूतियापने को पूरी तरह समझता था । दरबार मे उन दिनों कई गुट थे, ईरानी ,तुरानी ,अफगानी और हिन्दोस्तानी ,राजपूत ... ढेर सारे ऐसा समझ लीजिए अटल बिहारी की 13 दलों वाली सरकार थी और किसी भी गट के नाराज होने का मतलब था कुर्सी या तख्त का खतरे में आ जाना ।राणा प्रताप चुनौती दे रहे थे और मिर्ज़ा गयास बेग की लौंडिया अगर सलीम से निकाह कर लेती तो दरबार मे ईरानियों का प्रभाव बढ़ना शुरू होता और राजपूत इसे बर्दाश्त नही करते और यदि ऐसे में जिल्ले इलाही की सरकार से समर्थन वापिस ले लेते तो राजपुताना हाथ से निकल जाता जो कि एक बड़ी त्रासदी होती अकेला राणा प्रताप ही धुंआ भरे हुए था मुगलों के बाकी के अलग होते तो फोगिंग मशीन चल जाती । तो मियाँ अकबर ने इस हरामीपन को भांप लिया कि मिर्ज़ा गयास बेग दिल्ली सल्तनत का बलबन बना चाहता है । अकबर ने सलीम साहब की एक न मानी सलीम बाबू खूब रोये चिल्लाए औरऊल ऊल के गिर गिर पड़े पर अकबर ने उनकी एक न सुनते हुए मेहरुन्निसा की शादी शेर अफ़ग़ान से करवा दी और शेर अफ़ग़ान का ट्रांसफर दूर के इलाके बंगाल की जागीर बर्धमान कर दिया गया । अली कुली बर्धमान आ गए और अपनी बीबी के साथ यहाँ रहने लगे पर मेहरुन्निसा का भारत की प्रथम महिला बनने और गयास बेग का उस हैसियत को पाने का ख्वाब जो मनमोहन सिंह की सरकार में सोनिया गांधी का था कहीं ज्यादा शिद्दत से देखा गया था ।तो बकौल शारुख खान जब आप शिद्दत से कुछ चाहे तो कायनात भी आपको व्व देने की साजिश करती है । अलीकुली बीबी के साथ मजे में दिन गुज़र रहे थे एक बेटी भी हो चुकी थी । उधर अकबर मियाँ भी कमजोर हो चुके थे सलीम ताकत पा रहे थे ईरानी गट उनके साथ था लिहाजा एक दिन उन्होंने बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन कोका जो कि रिश्ते में सलीम का भाई भी था से अलीकुली को पकड़ कर लाने का हुक्म फरमाया । अलीकुली ने इस पर ऐतराज जताया और एक छोटा सा युद्ध जिसे युद्ध के स्थान पर झड़प या मुठभेड़ दोनो में हुई और बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन और बर्धमान के दुर्गाधिपति शेर अफ़ग़ान दोनो मारे गए ।सलीम को अपनी सल्तनत के एक और प्रतियोगी से निजात मिली और नूरजहाँ को साम्राज्ञी बनने की राह में रोड़े शेर अफ़ग़ान से। मेहरुन्निसा अपनी बेटी के साथ दोबारा से सलीम के जनानखाने पहुंच गई ।मिर्जा गयास बेग एत्मादुद्दौला के ख़ितब से नवाजे गए और कुछ दिनों बाद जहांगीर ने मेहरुन्निसा से बाकायदा निकाह किया और मेहरुन्निसा को नूरजहाँ के नाम से जाना जाने लगा । फिर ये भी सुना जाता है कि जहांगीर ने एक प्याला शराब के लिए पूरा हिंदुस्तान नूरजहाँ के क़दमो में रख दिया । 

खैर मेरे पीछे जो इमारत देख रहे हैं वह नूरजहाँ के उसी बदकिस्मत पहले पति शेर अफ़ग़ान की कब्र पर बना एक छोटा सा मक़बरा है ।

अब नूरजहाँ और मुमताज की कहानी फिर कभी


मंगलवार, 18 अगस्त 2020

वराह मिहिर की वेधशाला

 दिल्ली की कुतुब मीनार कहते हैं कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया और  सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इसे कुतुब मीनार नाम दिया । सच्चाई है या नही, नही पता क्योंकि कहा यह भी जाता है कि यह स्थान गुप्त वंश के शासन काल मे चंद्रगुप्त विक्रम दित्य के नव रत्न में से एक वराह मिहिर की वेध शाला थी और इसे गरुण स्तम्भ कहा जाता था  ।मिहिरावली नाम का शहर उसी वराह मिहिर के नाम से बसाया गया था जो आज मेहरौली के नाम से पुकारा जाता है ।इस काम्प्लेक्स में 27 मंदिर थे जो ग्रहों और नक्षत्रों को समर्पित थे ।  विदेशी लुटेरों के हमले ने भारत की कला ,स्थापत्य, धर्म और संस्कृति का बेहद नुकसान किया ।इस काम्प्लेक्स को भी ध्वंश किया गया और इस्लाम की ताकत दिखाने के लिए उन्ही ध्वंसावशेषों पर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बना दी गयी । 

खैर हम बात कर रहे थे वराह मिहिर की वराह मिहिर का जन्म उज्जैन के समीप 'कपिथा गाँव' में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता आदित्यदास सूर्य के उपासक थे। उन्होंने मिहिर को (मिहिर का अर्थ सूर्य) भविष्य शास्त्र पढ़ाया था। मिहिर ने राजा विक्रमादित्य के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष की आयु में होगी, यह भविष्यवाणी की थी। हर प्रकार की सावधानी रखने के बाद भी मिहिर द्वारा बताये गये दिन को ही राजकुमार की मृत्यु हो गयी। राजा ने मिहिर को बुला कर कहा, 'मैं हारा, आप जीते'। मिहिर ने नम्रता से उत्तर दिया, 'महाराज, वास्तव में मैं तो नहीं 'खगोल शास्त्र' के 'भविष्य शास्त्र' का विज्ञान जीता है'। महाराज ने मिहिर को मगध देश का सर्वोच्च सम्मान वराह प्रदान किया और उसी दिन से मिहिर वराह मिहिर के नाम से जाने जाने लगे। भविष्य शास्त्र और खगोल विद्या में उनके द्वारा किए गये योगदान के कारण राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने वराह मिहिर को अपने दरबार के नौ रत्नों में स्थान दिया।


वराह मिहिर की मुलाक़ात 'आर्यभट' के साथ हुई। इस मुलाक़ात का यह प्रभाव पड़ा कि वे आजीवन खगोलशास्त्री बने रहे। आर्यभट वराहमिहिर के गुरु थे, ऐसा भी उल्लेख मिलता है। आर्यभट की तरह वराह मिहिर का भी कहना था कि पृथ्वी गोल है।ये तब की बात है जब यूरोप में लोग नंगे जंगलों में घूम करते थे और अर्धमानव से ज्यादा कहलाने योग्य न थे । 17 वीं सदी में जब गैलीलियो ने कहा था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तब उसे दंडित किया गया था और उसके कथ्य को अवैज्ञानिक मानते थे गोरे ।और  न्यूटन से सदियों पहले वराह मिहिर ने गउरुत्वाकर्षण बल के विषय मे बताया था । उन्होंने कहा था  कि सभी वस्तुओं का पृथ्वी की ओर आकर्षित होना किसी अज्ञात बल का आभारी है। 

उन्हें विशेष रूप से यह जानना चाहिए जो समस्त ज्ञान के लिए पश्चिम की ओर देखते हैं और मानते हैं कि अगर अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल न होते तो उनके बच्चों का जीवन अधूरा रह जाता ये तो अंग्रेज़ थे जिन्होंने हमे तमीज़ और तहज़ीब सिखाई ।

खैर हमे अपने इतिहास और ऐतिहासिक स्थलों के विषय मे जानने के लिए घर से निकलना पड़ेगा ।पुराने ग्रंथों और स्मृतियों का अध्यन करना पड़ेगा । अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भरिय भाषाओं का अध्यन करना पड़ेगा क्योंकि भारत का ज्ञान और संस्कृति का आधार भाषाएं है ,भारतीय दंत कथाओं और प्रचलित किस्सों का तार्किक विश्लेषण करना पड़ेगा शायद हम तभी अतुल्य  भारत को जान पाएंगे ।

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

बिहार चला बबुनी

छपरा सिवान बिहार
बिहार गए हैं कभी ।भाई हमको तो अच्छा  लगता है।यहाँ के लोग, यहाँ का लिट्टी और भूजा ।पूरी सब्जी और जिलेबी (जलेबी कतई नही)  यहां का खाना पीना (जब भी खाना पीना कहता हूँ तो लालमुनि गुस्सा हो जाता है कहता है पीने के बात मत कीजिये नीतीश बाबू बलजबड़ी पीना बन्द करवा दिए हैं)
मन मोह लेगी यहाँ की बोली की मिठास और राह चलते हास परिहास ।शारदा सिन्हा से लेकर गुड्डू रंगीला और गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो से लेकर होली में के खोली तक। सब कुछ बेहद अपना सा ।
बिहार के इस हिस्से में मैंने कुछ दिन बिताये हैं ।यहां के बुजुर्गों से बात करना शुरू कीजिये तो वे बड़े गर्व से बताते हैं की jp के आंदोलन में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था । कैसे वो जनता को एकत्र करते थे और भ्रष्ट व्यवस्था को पूरी तरह उखाड़ फेंका था ।
 ये इलाका आज भी विकास से बहुत दूर है । नसड़कें न साफ पानी न रोजगार । कच्चे मकानों की ढेर सारी बस्तियाँ । आर्थिक विषमता बौद्धिक जड़ता और कैसे भी सडे गले के साथ निभा लेने की समझोता वादी सोच । सब ने अपना डेरा जमाया हुआ है । ये वही इलाका जहाँ संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति ने जन्म लिया था । मुझे लगता है जो ऊर्जा इन बुजुर्गों ने JP के आंदोलन के लिए लगाई थी  उसकी आधी ऊर्जा भी वो सिर्फ अपने गाँव की बेहतरी में लगा देते और उन्ही तेवरों के साथ जो उन्होंने JP से सिखा था तो तस्वीर कुछ अलग ही होती।
 बिहार के जिले सिवान में हूँ । उपजाऊ क्षेत्र है व्यवस्थाएं बंजर हैं । इलाका एमसीसी माओवादी चरमपंथियों का गढ़ रहा है नरसंहार  होते रहें हैं ।इलाका बाहुबली शहाबुद्दीन के के लिए भी कुख्यात रहा है । ठिकाने तक पहुचाने वाले अपनी गाडी के ड्राइवर से जब पूछा  'अब तो शांति है ?'
 जवाब मिला 'अलबत्त बात करते हैं जी सिवान में मर्डर कहियो बंद नही होता है ।'
 विकास नाम के जीव से लोग अभी परिचित नही हैं। पिछली पीढ़ी के लोग शान से बताते हैं कि उन्होंने जे पी के आंदोलन में भाग लिया था पर वर्तमान पीढ़ी में सड़ी गली व्यवस्था और पिछड़ेपन से विद्रोह खत्म सा दिखता है। लोग तथाकथित नेताओं के करीबी बनना चाहते हैं रौब बना रहे और  कुछ सरकारी योजनाओं में बिचौलिया बन सकें ।
 राजनैतिक चेतना तो है पर हिम्मत कम होती जा रही है ।सुबह सुबह गांव के लड़के दंड बैठक करते हुए और दौड़ लगते हुए दिख जाएंगे। बहाली की तैयारी है ।
एक तस्वीर में जो पीपल का पेड़ देख रहे हैं वो सिर्फ पीपल का पेड़ नही है। गांव के स्थान देवता हैं पहलवान जी । कहते हैं कि मनौती पूरी होने पर पहलवान जी पर लाल लंगोट और शराब का पौआ चढ़ाना पड़ता था । 
पहलवान जी(पीपलका पेड़) के नीचे बैठे गाँव के तेज बहादुर के अनुसार " नितिशवा जब से दारू बंद किया है पहलवान जी खाली लाल लंगोटा ही डोलाते रहते हैं ।

लोगों ने बताया कि पास ही गंगा व सरयू नदी के संगम है और यह स्थल .महर्षि गौतम और ऋषि श्रृंगी की भी तपोभूमि रही है। गौतम ऋषि भी सप्तर्षियों में माने गये हैं। कहा जाता है कि गौतम ऋषि मिथिला नरेश जनक जी की सभा में अपने पुत्र सतानंद जी को स्थापित करने के बाद अपनी धर्मपत्‍‌नी अहिल्या तथा पुत्री अंजनी के साथ इस स्थान पर आये तथा इसे अपनी तपोभूमि बनाया। माता अंजनी हनुमान जी की माता थीं इस कारण इस स्थान को हनुमान जी का ननिहाल होने का भी गौरवशाली इतिहास है।
कथा है कि देवताओं का राजा इन्द्र ने छल से ऋषि पत्नि अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया गौतम को जब जानकारी हुई तो उन्होंने देवराज के साथ अहिल्या को भी इसके लिए दोषी माना और शाप दिया अहिल्या पत्थर के समान जड़ हो गयी । भावनाओं से शून्य हो गयी होंगी शायद ,हैरान रह गयी होगी कुछ इन्द्र के छल से कुछ अपने पति के उसके प्रति अविश्वास से ।और फिर राम के चरण पड़े यहां और अहिल्या को छूते ही शायद वात्सल्य जाग पडा  होगा और अहिल्या वापस सामान्य जीवन की तरफ लौट पड़ी होंगी । 
संयोग से उसी पावन भूमि पर गंगा और सरयू के संगम के समीप मर्यादा पुरुषोत्तम राम की महिमा को याद करते हुए स्वयं को धन्य पाता हूँ ।
ईश्वर से प्रार्थना बिहार में बहार आये ।

मंगलवार, 5 मई 2020

खूब पिलाई राजा जानी

खूब पिलाई राजा जानी

सब व्योपारी घर के अंदर
रिश्तेदारी घर के अंदर
मरे मजूरा घर के अंदर
तुलसी सूरा घर के अंदर
हक्का बक्का घर के अंदर
कलम बुदक्का घर केअंदर
बस दारू को छूट मिलेगी
दारू खाली कोष भरेगी
नियम धरम सब रक्खो ताक
 लॉक डाउन की माँ की आंख

हमसे बोले घर मे बैठो,
दिया जलाओ थाल बजाओ
योग करो और गाना गाओ
 सब कुछ लेकिन घर के अंदर
बाहर निकले लट्ठ बजेगा
देश द्रोह का बैज सजेगा
खुले हाथ से दान करो तुम
,खुद पर भी अभिमान करो तुम
ग्रेट देश की ग्रेट प्रजा हो
ग्रेट है संकट ग्रेट बनो तुम
 छुआ छूत का रोग है बच्चा
,काहे किसी का थ्रेट बनो तुम
 सुनी तुम्हारी मन की बातें ,
सब बातें थी बड़ी सुहानी
खूब कहीं थी राजा जानी
तुम बन गए लीडर नूरानी
 अब लगता बौराय गए हो ,
या दबाव में आय गए हो
नशा माफिया हावी है
 तुम ठेका सब खुलवाय रहे हो
सुना है इस से कोष भरेगा
भारत को समृद्ध करेगा
लगे हाथ कुछ और भी कर लो
 जो खाली है वह भी भर लो
 जुआ अपहरण सट्टेबाजी,
 लूट डकैती रंडीबाजी
 ये सब भी कानूनी करदो
और इन सब पर टैक्स लगादो
मुद्रा कोष के भाग जगा दो
सभी खजाने भर जाएंगे
क्या होगा कुछ लोग बेचारे
तड़प सिसक कर मर जाएंगे
 ठेका ही क्यों कोठा खोलो
और भी गिर करऊंचा सोचो
मुन्नी बाई नाचें और तुम
 खीसें काढ़े गजरा बेंचो
 तभी बेचारे राम राज्य  के
 सपने पूरे हो पाएंगे
 लाज शरम बेचनी पड़ेगी
 तभी खजाने भर पाएंगे
 हे भारत के भाग्य विधाता
मर गया क्या आंखों का पानी
खूब पिलाई राजा जानी

----–---------------- ----------------राम जनम

रविवार, 3 मई 2020

 काए मंगरू कैसी कट रही

का बतलायें दद्दा अब तो खाबे के ऊ लाले पड़ रहे
 राशन पानी खत्म हो गाओ बैठे बैठे पाँव उखड़ रहे
 मन्स मंजूरी बन्द हो गयी, धंदा सबरे बन्द हो गए
पहले कछु तो मिलइ जात तो अब तो मूसरचन्द हो गए
कैसे कटें विपद के जे दिन
हिम्मत नहीं डटाएँ डट रही

 हम जानत है कैसे कट रही

हडबडाय के लोचन भैया घर के लाने पायन चल भए
 हर नाके पे डंडा खाए करे निहोरे आगे बढ़ गए
धूप घाम में चलत रहे फिर संझा भई ओ सूरज ढल गओ
घर तक पहोंच नहीं पाए उनके ऊपर तें टिरक निकर गओ
 उनके बच्चन की सूरत
आँखिन के आगे सें नही हट रही

हम जानत हैं कैसे कट रही

 कल आए थे चार जने , बोले तुम बिल्कुल मत घबरइयो 
 हम दे रहे पूड़ी के पैकेट खुद खइयो और सबे खवईओ
 हाथ मे धर के पैकेट उनने जाने कितने फोटू खींचे   
 पैकेट पकड़त सरम तो आई खड़े रहे आँखिन को मीचे
 सुनी है उनकी बोई सेल्फी
फेसबुकन पे बहुतई हिट रही
हम जानत हैं कैसी कट रही ।

----------राम जनम

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

जय छिन्नमस्तिके

राँची से लगभग चालीस किलो मीटर दूर भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है छिन्नमस्तिका शक्ति पीठ। हम सुबह लगभग 10 बजे निकले थे। एक घंटे का सफर रांची नगर छोड़ने के बाद सड़कें थोड़ी संकरी हो जाती हैं । जीवन थोड़ा और शिथिल और शांत दिखता है । आदिवासी युवा मुख्य धारा की ओर बढ़ चले हैं । सिधु कानू और विरसा मुंडा की विरासत संजोए ये धरती आकर्षित करती है । लाल पलाश के फूलों को देखते हुए एक गीत मन मे गूंजता है "जब जब मेरे घर आना तुम फूल पलाश के ले आना " कबीर भी याद आते हैं "दिन दस फूला फूल के खंखड़ भया पलाश  " और साथ ही प्रेमचंद की पंक्ति जो उन्होंने गोदान में धनिया के लिए कही थी  जो अब पूरी तरह याद नही पर भाव यह था कि ग्रामीण सौंदर्य अभाव में जल्दी ही मुरझा जाता है ।आदिवासी स्त्रियों को देखते हुए पलाश और धनियां से तुलना करने लगता हूँ । पिछली बार राँची आते समय ट्रेन में जब सुबह  नींद खुली और खिड़की से देखा तो पलाश के लाल रंग जैसे पूरी धरती को लाल करते दिख रहे थे आसमान में सुबह का लाल सूरज लालिमा बिखरा रहा था । सब कुछ इतना मनमोहक था की मैं सम्मोहित सा अपनी बर्थ से उठ कर गेट पर आ गया और दरवाजा खोल कर बहुत देर तक निःशब्द उस लालिमा को मन के कैनवास पर समेटने की कोशिश करता रहा था । बाद में एक बार ठाकुर से कहा था कि लाल पलाश के फूल और वन की खूबसूरती मुझे हमेशा आकर्षित करती है । जवाब में उसने कहा था तुम्हारा पेट भर हुआ है इसलिए वन नदी नाले पहाड़ फूल पत्ती सब तुम्हे खूबसूरत लगेंगे । उस से पूछो जिसके लिए सबसे खूब सूरत उसकी थाली में भात है ।

"कुछ खायेगा "  उमेश पूछता है
"खा लो "
और हम एक गुमठी के आगे गाड़ी रोक लेते हैं । दुकानदार चाय बना रहा है आलू चॉप और पकौड़ी रखे हुए हैं ।
 "दो चाय बना दो "
"स्पेशल बना दें बाबू "
"बनाओ "
चाय बनने लगती है । आलूचोप हमेशा ही अच्छा लगा है इस इलाके का । जब आप गर्म गर्म आलू चोप को फोड़ते हैं तो उसके अंदर की गर्म भाप जिसमे चोप के आलू के मसाले में लहसुन की गंध स्वदेन्द्रियों को और ज्यादा उत्तेजित कर देती है ।
चाय और चॉप खाने के बाद हम आगे बढ़ चले । ज्यादा दूर नही था वहां से थोड़ी देर बाद पहुंच गए । काफी दूर से प्रसाद और फूल  खरीदने के लिए दुकानदार आवाजें लगाते हैं ।हमने कर किनारे लगाई जूता चप्पल उसी में रखे और फूल प्रसाद की डलिया ले कर दर्शन के लिए बढ़े ।लंबी लाइन थी। देख कर लगा कम से कम दो घंटे कतार में लग्न पड़ेगा देवी दर्शन को ।
"लाइन लंबी है" मैने कहा
"देखते हैं कोई जुगाड़" उमेश ने कहा और अपना कार्ड सामने बैठे पुलिस के दारोगा को दिखाते हुए कुछ समझाया ।
 भारत मे अगर आप सरकारी तंत्र में ऊपर के पायदान में कहीं हैं तो काम जल्दी हो जाता है । हमारा भी हो गया लाइन तोड़ कर आगे बढ़ जाने की अनुमति तो नही मिली पर  हमे लाइन छोड़ देने को कहा गया । मंदिर के एक दूसरे गेट जिधर बलि दी जाती है कि तरफ से प्रवेश मिल गया रक्त से भरा हुआ फर्श नासापुटों में बलि पशुओं के रक्त की गंध भर गई थी । वे बकरे जो इस पवित्र कार्य के लिए लाए जाते हैं शायद अपनी बलि दिए जाने से कुछ क्षणों पूर्व अपनी नियति अवश्य जान जाते हैं । मुझे उनकी तरफ देखने ।के डर लगता है । मंदिर का वह पुजारी जो बलि देने के कार्य मे लगा हुआ है भाव शून्य चेहरे के साथ अपने कार्य मे लगा हुआहै । बकरे का सिर पुजारी का है और धड़ यजमान का । बलि की वेदी में जब पशु की गर्दन फसाई जाती है और उसकी टाँगों को पीछे की तरफ खींचा जाता है उस से धर्म का कोई लेना देना नही है बल्कि विशुद्ध अर्थशास्त्र है इस तरह खिंचने से पशु की गर्दन पूरी लंबाई केसाथ खिंच जाती है और अपने कार्य मे कुशल बलि कर्ता बिल्कुल किनारे से धड़ से अलग करता है । संध्या समय मंदिर बंद होने से पहले कटे हुए सिरों को माँस व्यापारियों को बिकना भी तो है । धर्म का अपना अर्थशास्त्र भी होता है, अपना बाजार होता है बलि के बाद पशु को देवी का प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है । आस पास बहुत सी ऐसी दुकाने बन गयी हैं कि जब आप यहां मनौती पूरी होने के बाद परिवार और कुटुम्बियों के साथ खस्सी की रस्सी हाथ मे पकड़ कर गीत गाते हुए आएं और बलि  के बाद प्रसाद यानी खस्सी को पकाने और भात पकाने की जिम्मेदारी दे सकते हैं जिसके लिए आपसे कुछ शुल्क लिया जाएगा और जब तक आप कुटुम्बियों के साथ नदी में स्नान करेंगे मेला घूमेंगे तब तक भोजन तैयार मिलेगा । आप धर्म यात्रा का पुण्य भी कमाएंगे और वन भोज का आनंद भी लेंगे ।

मंदिर में देवी की प्रतिमा है ।श्रद्धा के साथ दर्शन करता हूँ ।देवीकी प्रतिमा दर्शाती है कि देवी कमल पर आलिंगनबद्ध कामदेव और रति के ऊपर खड़ी हैं उनके एक हाथ मे खड्ग है और दूसरे में उनका स्वयं का कटा हुआ सिर जिसे उन्होंने स्वयं अपने खड्ग से काट है ।देवी के धड़ से रक्त की 3 धाराएं निकल रही है जिनमे एक धारा का पान देवी स्वयं कर रही है तथा बाकी की दो धाराओं के पान उनकी सहयोगी वारुणी और डाकिनी ।
छिन्नमस्तिका को समर्पित यह शक्ति पीठ तांत्रिक रहस्यों की  साधना का प्रमुख स्थल रहा है । मुझे लगता है
देवी छिन्नमस्तिका की  प्रतिमा सांकेतिक भाषा मे संसार के रहस्यों से संबंधित ज्ञान का ही श्रोत है । कामदेव और रति वासना का प्रतीक हो सकते हैं खड्ग ज्ञान का और कटा हुआ मस्तक अभिमान की समाप्ति या आत्मा या श्रेष्ठ को देहवाद की जकड़न से मुक्त करने का एक इशारा भी हो सकता है । यह इस बात का भी संकेत हो सकता है कि वासनाओं और त्याग के समन्वय के  बीच ही जीवन और जगत का संतुलन है ,, यह भी हो सकता है कि यह संसार के जीवन चक्र जन्म और मृत्यु और उसके दो किनारो को दर्शा रहे हों। यह भी हो सकता है कि यह बता रहे हों कि वासना निम्न ताल है और मोक्ष या देह से मुक्ति ऊपरी किनारा , रक्त की तीन धाराएं सत रज तम का प्रतीक हो सकती है ।और भैरवी और दामोदर का यह संगम प्रतीक हो सकता है पुरुष और प्रकृति के संगम का प्रतीक भी
हालांकि यह सब बहुत कुछ उथला चिंतन है
में नही जानता किस रहस्य को उकेरा गया है प्रतिमा में पर इतना अवश्य जनता हूँ कि जीवन और जगत के रहस्यों को उद्घाटित करने का एक दार्शनिक और वैज्ञानिक प्रयास है ।संकेतों की भाषा मे ऐसा बहुत कुछ कहा गया है जो जानने योग्य है ।भारत विश्वगुरु रहा है ,दोबारा बन सकता है पर प्रयास यह जानने के करने होंगे इन मूर्ति शिलाओं और दक्षिण तथा वाम मार्गी सिद्धांतों की पुस्तकों एवं परम्पराओं में बिखरे ज्ञान को समेटने के ।बहुत कुछ नष्ट हो चुका है , और बहुत कुछ को हम थोथी और उधार की आधुनिकता के आकर्षण में नष्ट होते रोज पा रहे हैं ।
हो सकता है ज्ञान को मूर्तियों में भी संग्रहित किया गया हो । उसे शायद हम कभी जान पाएं ।क्योंकि इस दुनिया मे कोई भी चीज यूँ ही नही होती ।यह अलग बात है हम उसे समझ न पा रहे हों ।