शनिवार, 16 जनवरी 2016

शफिकवा की दुकान

ऐ शफिकवा कहाँ हो आजकल । दूकान भी बन्द कर दिए हो।कर क्या रहे हो आज कल ?
शफिकवा नही हुज़ूर सय्यद शफीकुद्दीन अब्बासी कहिये। मियाँ वो दिन हवा हुए जब हजरत सैय्यद शफीकुद्दीन साहब पुराने सामान की खरीद फरोख्त किया करते थे और आप जैसे अहमक हमे शफिकवा कबाड़ी कहा करते थे ।  दुनिया आप को तभी इज़्ज़त देगी जब आप दूसरों को इज़्ज़त देंगे ।

जनाब शफीकुद्दीन साहब ने मुझे कुरुक्षेत्र में खड़ा कर अपना विराट रूप दिखा दिया था और वे पूरी तरह मुझे अर्जुन की भूमिका में ला कर श्री कृष्ण की मुद्रा में आ गए थे।
मैं आश्चर्यचकित था की शफिकवा करने क्या लगा है कि कबाड़ी का ठेला एकदम से टाटा सफारी हो गया, घुटन्ना बनियान में रहने वालामेरे सामने भकभके सफ़ेद कुर्ते पजामे में खड़ा मुझे समझ रहा था

तो जैसा की मैंने फ़रमाया कि ख़ुदा की बनाई इस खूबसूरत दुनिया में सबसे खूबसूरत काम है दूसरों को इज़्ज़त देना । जिस दिन मुझे इस बात का इल्म हुआ मैंने एक संस्था बनाई और उसका नाम रखा अपने वालिद जनाब मुस्तक़ीम अहमद साहब के नाम पर।
पर ये संस्था करती क्या है प्रभो?मैंने एक मासूम सा सवाल पूछा

निहायत ही उजबक किस्म के आदमी हैं आप । कहा तो दुनियां में सबसे अच्छा काम है लोगो को इज़्ज़त देना वही करती है ।

महाराज जरा विस्तार दें कथन को मैंने बड़ी विनीत मुद्रा में कहा

अब आप अपने हैं इसलिए बता रहा हूँ ।शफीक सूत जी वाली मुद्रा में आ गए और बोले
मियाँ एक दिन ठेला लेकर हम रद्दी खरीदने के लिए आवाज लगा रहे थे तो एक ना मालूम से शायर अपनी कुछ रद्दी बेचने आ गए और लगे हमें शायरी सुनाने। शायरी तो ऐसी वैसी ही थी पर हम ने उनका दिल रखने के लिए कह दिया की हुज़ूर शायरी बेहद उम्दा किस्म की करते हैं आप , ये सुन कर शायर साहब बेहद उदास हो गए और बोले शफ़ीक़ ये दुनिया हमे जानती ही कहाँ है।
हमने कहा हुज़ूर हम अगर किसी लायक होते तो आपको दुनिया के सामने जरूर लाते ।
शायर साहब को ग़म था की उनके पास दौलत है ईल्म है पर उसे कोई जनता ही नही। ऐसे तमाम लोग हैं दुनियां में जिन्हें शोहरत की भूख है जो रोज छपना चाहते हैं अखबार में ।
हमने बात ही बात में जिक्र किया अपने फिरोज के साथ जो आजकल अखबार में मुलाजिम है एयर खुद को खबरनवीस कहता था। और फिर उसी दिन नीव पड़ी मुस्तक़ीम अहमद सामाजिक उत्थान समिति की।
शफ़ीक़ ने पान की पीक थूकी और कहा कि फिर सबसे पहले हमने खुद को इज़्ज़त बख्शी ।खादी का कुरता पजामा सिलाया और फिरोज को लगाया काम पर ।फिरोज ने उन ढेर सारे लोगों को तलाश लिया जो पैसे वाले तो थे पर समाज में लोग उन्हें उतनी इज़्ज़त नही देते थे। अखबार जिनकी फोटू न छापता था । और वे अख़बार में फोटो और बिरादरी में रौब चाहते थे ।बस फिर हमने शुरू किया उन्हेंस्टेज पर इज़्ज़त देने का काम ।मुस्तक़ीम अहमद समाज उत्थान समिति इन गाँठ के पूरे लोगों के लिए सम्मान समारोह आयोजित करने लगी ।उन्हें माला पहना कर गुलदस्ते देकर उनके फोटो अखबारों में देने लगी और सब इज़्ज़त पाने लगे।
पर हुज़ूर इसमें जो  खर्च आता है वो कहाँ से पूरा होता है ।आपने तो कबाड़ का काम भी बंद कर दिया ।
कसम ख़ुदा की आप निरे बौड़म ही हैं। चोंच जिस का गाना गायेगी उसका अन्न भी तो वही देगा । मियाँ इस दुनिया में सब से बड़ी चीज है इज्जत मुस्तक़ीम अहमद सोसाइटी सब को इज़्ज़त सम्मान देने का काम करती है तो क्या इज़्ज़त पाने वाले लोग उसे चंदा भी न देंगे आखिर ये सब उन पर ही तो खर्च होना है ।
मियां चाहो तो तुम्हारे लिए भी एक सम्मान समारोह कर दें । तुम्हारी ये जो नून तेल धनियाँ की दुकान है न । इसका भी रुतबा बढ़ जाएगा जब तुम्हे सोसाइटी की तरफ से सर्वश्रेष्ठ व्यापारी का सम्मान मिलेगा , कुछ खर्च जरूर आएगा। सोच लो , फरोज तगड़ी सी फोटो छापेगा अखबार में माला पहने और सम्मान पत्र लिए ।
अच्छा अब चलते हैं , इरादा बने तो फिरोज से बात कर लेना ।
शफीकुद्दीन साहब ने गाड़ी का दरवाजा खोला और पिछवाड़े से कुर्ता उठा कर सीट पर तसरीफ रखी , पान की पीक थूकी, गाड़ी का दरवाजा बंद किया और धूल उड़ाते चले गए ।