अफाक मियाँ सैद्धांतिक तौर पर बड़े कट्टर किस्म के मुसलमान थे पर जब भी कोई सिनेमा का पोस्टर A मार्क के साथ लगता तो अफाक भाई उसकी चर्चा गजेंदर से जरूर करते । ऐसी ही किसी फिल्म का रंगीन पोस्टर लगा हुआ था । आफाक से रह न गया एक दम से फट पड़े ।
" देखिए अब कितना फालतू फ़िल्म लगता है ।फिलिम तो एक ही ठो बना है आज तक मुग़ल ए आज़म । "
मुगले आजम बोलते हुए नुक्ते को थोड़ा गाढ़ा जरूर कर दिया । शायद नुक्ता लगा कर बोलना वो अपना मजहबी फ़र्ज़ समझते थे ।
उस वक़्त भी उनकी निगाहें पोस्टर पर ही थीं ।
बताइए यह भी कोई फ़िल्म हुई उफ्फ ,उफ्फ । या खुदा फट जाए यह धरती और सम जाऊं में उसमे ।
गजेंदर बाबू खैनी मसलते हुए मुस्कुराए और अफाक से बोले
" ,देखने चलेगा ? इस से बढियाँ वाला डुराण्ड में लगा है ।
- लाहौल विला कूवत। कैसा बात कर रहे है गजेंदर भाई ।ई सब फिलिम देखते हुए कोई देख लेगा तो क्या कहेगा ?
-- ए अफाक , करबा लड़बकई। खाली शेक्सपियर पढ़ने से नही होता है ।जीवन मे सेक्स नही होगा तो पीयर हो जाओगे। और शेक्सपियर भी कहते हैं "कावर्डस डाई मेनी टाइम्स बिफोर देयर डेथ" घुट घुट के मत जिओ , लोग के चिंता मत करो , लोगवा तबे न देखेगा तुमको जब उ खुद भी वहाँ होगा ।डराओ मत , चल सिनेमा देखे
और अफाक भाई घिसिया लिए गए
साढ़े चार फिट की दुर्बल काया और धंसी हुई आंखों पर गोल चश्मा लगाये आफाक अक्सर 6 फिटे गजेंदर द्वारा घिसिया लिए जाते थे । पर थे दोनो पक्के यार
P k d का लेक्चर छूट जाएगा । आफाक ने कहा
चल रे । एको किलास गोल कर के सिनेमा भी नही देखा त जिंदगी अधूरी रह जाएगी । चल
आफाक ने कलेंजे पर पत्थर रखा , हिम्मत जुटाई थी और चले गए थे क्लास गोल करके । टिकट ले कर अंदर आये तो फ़िल्म शुरू हो गयी थी ।
गजेन्दर ने बगल में बैठे अधेड़ से पूछा " फिलिमियाँ कितना देर पहले शुरू हुआ चचा ?"
"अभी सीन नही निकला है " जवाब मिला ।
"इसको मालूम है कौन सीन " आफाक ने फुसफुसाते हुए पूछा
गजेन्दर बाबू मुस्कुराए " हियाँ सब के मालूम है कौन सीन । तुमही बकलोल हो ।
बाद में सुना अफकवा भाग आया था ।पूरी फिल्म उस से देखी नही गयी थी ।
अगला किस्सा अब कल...
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