सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

फिल्म देखी  हैदर।  और इस नतीजे पर पहुँचा कि  कुछ चीजें  सिर्फ रंगमंच पर ही अच्छी लगती हैं. ऐसे समय में जब चारो तरफ क्रिटिक्स  हैदर की प्रशंसा कर   रहे हैं ,,मुझे लगता है स्क्रिप्ट में कुछ कमी रह गयी।  ये स्क्रिप्ट रंगमंच के लिए बेहतरीन थी पर फिल्म वाले फॉर्मेट में फिट नही हो रही।  हैदर को रंगमंच पर देखना एक अद्भुत अनुभव होता पर फिल्म बोझिल हो गयी।  इस स्क्रिप्ट के साथ रंगमंच पर जो   दृश्य रचे  जा सकते थे उन्हें सोच कर ही रोमांच हो उठता है पर कैमरा  उन्हें  समग्रता में पकड़ नहीं पाया। खैर तब्बू और के के मेनन के बेहतरीन अभिनय को देख कर मन प्रसन्न होता  है।  फिल्म कई जगह झोल खाती भी दिखती है और बेवजह के दोहराव ऊब पैदा करते हैं।
कॉलेज के दिन भी खूब चमकदार  थे बेफिक्रे और रूमानी।  तब अपनी हैसियत बहोत बड़ी थी ये दुनिया मुट्ठियों में कसमसाती थी और हमें लगता था हम दुनिया को अपनी तरह चलने की क़ाबलियत रखते हैं।  हमें लगता था हम जैसे चाहे वैसे बदल सकते हैं समय की गति। ऊर्जा का एक समुद्र था हमारे अंदर। और अब हा हा हा हा हा हा .........................  
खूब योजनाएं बनाइये ,,,पर ये सारी योजनाएं हवाई साबित होती हैं जब आप का  सामना जमीनी सच्चाई से होता है।गाँव केसरकारी   स्कूल में बालकों के रुकने के   भासण वासन तो ठीक हैं परन्तु उन बालिकाओं को क्या आप  रोक सकते हैं जिन्हे अपनी माता के साथ हलवाई की टोली में पूरी बेलने किसी शादी  में जाना है जहाँ उसे 100 रूपये दिए   जाएंगे। या वे बालक जो अपने पिता के साथ पूरे दिन मछली पकड़ेंगे और उसे बेच कर कुछ पैसे कमाएंगे। व्यर्थ साबित होते जा रहे हैं गाँव की गरीब जनता को ये सारे  विद्यालय और शायद यही कारण है की उस जनता ने एक गाँव में इन विद्यालयों की व्यर्थता की घोसणा सर्दी की एक रात में विद्यालय के दरवाजे तोड़ कर उसे जला कर ,,,रात भर ताप कर कर दी। ग्रामीण जनो के लिए शायद इन विद्यालयों का यही हासिल है। 

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

पाकर न तुम्हे 
ऐसा लगा 
जैसे एक खाली आसमान मेरे सामने गिर पड़ा है। 
मैं खुद को महसूस कर रहा हूँ 
पराजित और अधूरा 
मुझे लग रहा है मैं लड़खड़ा रहा हूँ ,,
 लग रहा है मैं बर्फ होता जा रहा हूँ। 
मैं हूँ ,,,,और मेरे हाथ में
 उम्मीद के बुझे हुए सूरज हैं 
दरकता हुआ वक़्त है ,,
लम्हों की  बिखरती हुई चिन्दियाँ हैं
मैं हूँ ,,,,और मेरे साथ 
तुम्हारे न होने का अहसास है 
मैं हूँ 
और मुझे मुँह चिढ़ाती हुई दुनियाँ है। . 
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