बात उन दिनों की है जब बारातें बसों में जाया करती थीं और बाजे वाले भी बारात के साथ ही जाया करते थे । ऐसी ही एक बारात गाँव से लखनऊ की तरफ जा रही थी । बाराती बसों में सवार हुए । बाजा वाले भी आ गए । बैठें कहाँ सीटें तो बारातियों से ही भर गई । लिहाजा बाजा वालों से कहा गया कि बस की छत पर बैठो ।
दो एक कुनमुनाए - छत्त पे इतनी दूर कैसे जाएंगे ठाकुर
ठाकुर बोले - हेलीकॉप्टर पे जाओगे , बजाएँगी कुड़कुड़ियाँ और बैठने है जहाज पे । चढ़ जल्दी छत्त पे ।
बहरहाल बस चली रास्ते पे एक ठेका मिला बस रोकी गयी ।ये हुआ कि स्टॉक ले लिया जाए ।कुछेक ने गला वहीं तर करने की ख्वाहिश भी जताई -अब इत्ती दूर बारात जाने हैं ऐसे ही सूखे सूखे ।अब लम्बददार के मोड़ा को ब्याव और रंग न जमे ।
तो बस रुकी और लोग अपने जरूरत का सामान लेने लगे ।
बस की छत से परभुआ बोला -- ठाकुर हमउँ हैं
ठाकुर ने ऊपर नजर घुमाई ,होठ मुस्कुराए और मुख से आवाज निकली - पतो है भोसड़ी के , आय जा नीचे ।
परभुआ एंड टीम खुश हो कर उतरने लगी तो ठाकुर ने फरमाया - ऐसे नही अपनी कुड़कुड़ियाँ औ पीपिया झुनझुना ले के उतर ।
परभुआ एंड कम्पनी विथ पीपिया झुनझुना और कुड़कुड़ियाँ उतर आए ।
ठाकुर साहब ने हुकुम फरमाया - बजाओ
जम के बाजा बजे ,नाच हुआ और लगभग 1 घंटा बाद बस आगे रवाना हुई ।
लगभग 2 घंटे बाद वाहनों की लंबी लाइन दिखाई दी बस भी उसी कतार में लग गयी । मालूम पड़ा कोई दुर्घटना हो गयी है जाम लगा है ।रास्ता साफ कराया जा रहा है आधा घंटा लगेगा । लोग बस से नीचे उतर कर टहलने लगे इतने किसी की नजर फिर से परभुआ और उसके साथियों पर पड़ी और उसके मुंह से निकला - परभुआ
परभुआ -जी मालिक
मालिक- नीचे उतर बाजा बजा
परभू और मंडली फिर नीचे उतरी और फिर से एक बार समा बांध दिया ।
बस फिर चली और घंटे डेढ़ के बाद बस के अंदर किसी बाराती ने कहा --बस रोक लो हवाई जहाज बनाये हो आदमी को टट्टी पेशाब भी नही करने दे रहे ।
लिहाजा बस फिर रुकी और यह तय हुआ कि जब तक लोग मूतें मातें तब तक एक बार डांस होना चाहिए और परभुआ से फिर कहा गया कि नीचे उतर और बीज अपनी कुड़कुड़ियाँ।
न चाहते हुए भी परभुआ और साथियों ने अपनी पोजिशन ली और परभुआ बोला रेडी... वन ....गो$$$
धुतुड़ धुतुड़ धों धों
धुतुड़ धुतुड़ धों धों
पीं $$$$
बाजा बजा
ठाकुर साहब गण गाना सुनते सुनते नाचते रहे और मूतते हुए भी उनके चूतड़ मटकते रहे और परभुआ झुंझलाते हुए भी धुन निकालता रहा
' लगता है जैसे सारे संसार की शादी है '
बस फिर आगे चली , शाम होने आयी थी और चाय की तलब लग रही थी लिहाज एक खुले से ढाबे के पास बस फिर से रोकी गयी ।बाराती उतरे और ठाकुर साहब ने फिर नजरें बस की छत पर फेरी कि परभुआ बोल पड़ा -- जे सही नही है ठाकुर हम ऐसे नहीं बजाय पाएंगे । हम जनवासे में बाजा बजाने के लिए आये और तुम जे पांचवीं बार रास्ते मे ही बजवा रहे ।
ठाकुर साहब ने परभुआ पे नजरें जमाये हुए ही आवाज लगाई--भुल्ली
भुल्ली-का है दद्दा
बस में से लइये तो हमाई बंदूक
भुल्ली दौड़ के दुनाला उठा लाया । ठाकुर साहब ने उसमे कारतूस भरे और परभुआ पर निशाना लगाया - तू बजाय रहो की हम बजावें ।
पीपिया बज रही थी , कुड़कुड़ियाँ ,ताल दे रहीं थी और बारातियों ने झुनझुने अपने हाथ मे ले लिए थे । उत्सव चल रहा था और ठाकुर साहब की बंदूक की नाल परभुआ की ओर थी
हवाओं में गीत बह रहा था
"पल्लू लटके
गोरी को पल्लू लटके
जरा सो ,जरा सो
जरा सो सीधो है जा बालमा मेरो पल्लू लटके ।
वाह भाई साब एकदम सजीव चित्रण किया है, मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंGajab
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