बंजारों सा चलता जीवन
बंजारों सा चलता जीवन
कितने ठौर बदलता जीवन
धुप छाँव और ऊंच नीच में
चलते चलते ढलता जीवन
गठरी लादे थके से कंधे
चाहें दो पल को सुस्ताना
धूल में लिपटे पैर भी ढूंढे
रुक जाने का एक बहाना
आँखों में धुन्धलाये सपने
खाली हाथ को मलता जीवन
कितने ठौर बदलता जीवन
कौन मिला किस से क्या पाया
जोड़ रहा क्या रत्ती पाई
क्या होगा सब जोड़ घटा कर
दुनिया कब किसकी हो पाई
पल में तोला पल में मासा
प्रति पल रंग बदलता जीवन
बंजारों सा चलता जीवन
बंजारों सा चलता जीवन