रविवार, 27 अक्तूबर 2013

बंजारों सा चलता  जीवन 


बंजारों सा चलता  जीवन
कितने ठौर बदलता जीवन
धुप छाँव   और ऊंच नीच में
चलते चलते ढलता जीवन

गठरी लादे  थके से कंधे
चाहें  दो पल को सुस्ताना
धूल में लिपटे पैर भी ढूंढे
रुक जाने का एक बहाना
आँखों में धुन्धलाये सपने
खाली हाथ को मलता  जीवन
 कितने ठौर  बदलता जीवन

कौन मिला किस से क्या पाया
जोड़ रहा क्या रत्ती पाई
क्या होगा सब जोड़ घटा कर
दुनिया कब किसकी हो पाई
पल में तोला पल में मासा
प्रति पल रंग बदलता जीवन

बंजारों सा चलता  जीवन
बंजारों सा चलता  जीवन


शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

मन बावरा



मन बावरा
सपने बुने
माने न किसी का कहा
कुछ ना सुने

सपने सुनहरे भोले
छूता जिन्हें ये हौले
कानो में मिश्री घोले 
जिनकी हंसी

बारिश की रिमझिम इनमे
गीतों की सरगम इनमे
इनमे रुपहली सी एक 
दुनिया बसी

निंदिया की गोदी में छुप
लोरी सुने
मन बावरा
सपने बुने