मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

चम्बल के किनारे


  जब भी वक़्त मिलता है चम्बल के किनारे जा बैठता हूँ । आज भी जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर चम्बल के किनारे खेडा अजब सिंह जाना था । चम्बल की पट्टी के लगभग ग्रामों में रोजगार के लिये पलायन आम बात है । बड़ी संख्या में घर खाली पड़े हैं और यहां के निवासी गण अहमदाबाद और दिल्ली जैसे महानगर में छोटे बड़े विभिन्न तरह के कामो में रत हैं ।पांच साल में एक बार ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रहा प्रत्यासी इनकी सुध लेता है और इन गांवों से बस भेजकर वोट देने के लिए बुला लिया जाता है । जो यहां रहते हैं उनके बच्चे यहां के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं ।बड़े कान्वेंट अंग्रेज़ी दां निजी  स्कूल को इन क्षेत्रों में बिज़नेस नज़र नही आता कि वे यहाँ कोई शाखा खोले ।लिहाज सरकारी स्कूल के जिम्मे ही इन गांवों की उन्नति का जिम्मा है । मेरी जिम्मेदारी इन विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की अकादमिक उन्नति का प्रयास करना और शिक्षकों को नए तौर तरीकों की जानकारी देना है । हालांकि बहुत लोग इन बीहड़ों में नही आना चाहते पर मुझे इन बीहड़ों में घूमना अच्छा लगता है । जन्म भूमि भले पश्चिम बंगाल का शिल्पांचल है पर पैतृक भूमि इसी चम्बल का किनारा है ।

खैर लगभग 12 बजे थे जब हम यहां के स्कूल पहुचे । अंदेशा था शायद सभी टीचर्स स्कूल में न मिलें पर सब थे ।और उम्मीद से ज्यादा यह था कि एक गर्म चाय का प्याला भी उपलब्ध था मेरे लिए ।  अपना काम निपटा कर नदी की तरफ जाने को कह कर आगे बढ़ गए । गांव के अंत मे बबूलों से घिरी एक इमारत नज़र आ रही है । पूछने पर मालूम हुआ कि यह बारात घर बनवाया गया है । गाँव खत्म होते ही एक ढलान है वहां से तेजी से नीचे की तरफ उतरते चले जाइये । पगडंडी बढती जाती है चारो तरफ ऊंचे ऊंचे मिट्टी के टीले । साथ चल रहा व्यक्ति कहता है कि नदी जब बढती है तो ये सारे टीले डूब जाते हैं ऊपर देखते हैं तो टाइल पर उगे हुए पेड़ों की जड़ें आधी हवा में झूलती नज़र आती है । बाढ़ का उतरता हुआ पानी मिट्टी को साथ ले गया है और जड़ें हवा में लटक रही है । यहां के निवासियों के हक़  की समृद्धि भी शायद कुछ लोग ऐसे ही चुरा ले गए हैं और ये जड़ें भी जीवनी शक्ति पाने के लिए झूल रही हैं ।

छोड़ो निठल्ला चिंतन ।

साथ चलने वाला साथी कहता है कभी पूरा समय निकल कर आइये सर यही दाल और टिक्कड़ बनवाते हैं । अचानक 1 नरिया से आवाज आती है " हमारा भी न्योता कर देना " कोई दिख नही रहा इधर उधर देखता हूँ । साथी व्यक्ति कहता है तुम ही तो बनाओगे । आवाज देने वाला अभी भी नज़र नही आता सिर्फ आवाज़ आ रही है । डकैत ऐसे ही छुपे रहते होंगे सोचता हूँ ।मन मे आता है कि यहाँ की गरीबी अशिक्षा और दो राज्यों की सीमा इसे डकैतों के घाटी बना देती है  । यह नदी क्या अब तक शापित है । यह घाटी सिर्फ डाकुओं के लिए ही जानी जाती रहेगी क्या। उफ फिर वही निठल्ला चिंतन । नदी  पास आ गयी है नदी की ढलान पर सरसों , चना बोया गया है । मचान बने हैं रात को खेत की रखवाली भी होती होगी । नदी के उस पर रेत पर चार मगर बैठे हुए हैं । इस पर हम बैठ जाते हैं । नदी में फारेस्ट डिपार्टमेंट का स्टीमर नदी के बीचों बीच पानी चीरता हुआ बढ़ रहा है । मगरों की गिनती चल रही है । देखिए दूरबीन से देख रहे हैं ।पानई में डॉलफिन भी है । साथ बैठ व्यक्ति कहता है कि कुछ दिन पहले आये होते तो स्टीमर की सैर करवा देता । ग्राम प्रधान से झगड़ा हो गया था उसने नौकरी से हटवा दिया  अफसर से कह कर । नदी के इस किनारे पथरीला तट है एक चबूतरा से बना है उस पर बैठ जाता हूँ । सूरज आज चटक निकला है धूप थोड़ी चुभ रही है पर शांत बहती हुई नदी और उसके किनारे पर लेटे मगर अछ्छे लग रहे हैं । आज कैमरा लाना चाहिए था । पर कोई नही अच्चजे तो लग ही रहा है । लगभग 1 घंटे बाद चलते हुए कहता हूँ अगली बार लंच यहीं करेंगे । साथी बट्टा है कि इस बार दूसरी तरफ चलेंगे उस करार के पीछे आपको ढेर सारे मगर दिखाई देंगे । में उसे देखता हूँ जी करता है कह दूं तुम्हारे आस पास कितने मगर हैं तुम देख नही पा रहे ,भोले हो । दिमाग झटका देता है ।फिर वही निठल्ला चिंतन । और में मुस्कुरा कर कहता हूँ ठीक है जैसा तुम कहो ।

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