सोमवार, 24 नवंबर 2014

भगवान  बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया और बोला  "मैं  सुख चाहता हूँ  " बुद्ध मुस्कुराए बोले पहले अपने बोले हुए वाक्य से  " मैं " हटा दे ये तेरा अहंकार है।  फिर" चाहता हूँ" हटा ये इच्छा है और अब देख जब तेरा अहंकार और इच्छा हट गयी तो जो बचा वह " सुख " ही तो है। 
उदयपुर के सिटी पैलेस पर खड़ा हुआ मैं सोच रहा था की भारत की आज़ादी का हम राजपूतों पर क्या फर्क पड़ा ,,,जो राजा थे वे बमुश्किल अपनी कुछ  संपत्ति ट्रस्ट बना कर बचा पाये और आज अपने महलों को होटलों की शक्ल दे कर फिरंगियों को चाय पिलाते हैं और जो साधारण जन थे उन्हें आरक्षण का दण्ड दे कर उनको उनकी योग्यता से वंचित किया गया ,,,,,इसका ये अर्थ नही था की जनतंत्र आया और सब बराबर हो गए ,,,बल्कि एक नए तरह की सामंतशाही  प्रारम्भ  हुई जहाँ राजा अपनी योग्यता से नहीं बल्कि धूर्तता से वोटों के द्वारा बनने लगे और अयोग्यता अगर वोट दे सकती थी तो सम्मानित होने लगी।