कुछ पौधे लगे हैं मेरे छोटे से गमलों वाले बगीचे में ,,तुलसी ,गुलाब, गुड़हल , कनेर। कुछ के मैं नाम नही जानता पर हैं वे भी बेहद खूबसूरत और सुगंध प्रदान करने वाले। बड़ी मेहनत और लगन से ले कर आया था मैं गमलों को और उन में लगे फूलों को। ज्यादा जगह नही है घर में तो एक छोटा सा हिस्सा जंगले के बगल से ले लिया था मैंने। सारे पौधे जंगले के किनारे लगे जंगले से आने वाली हवा से झूमते रहते और खुश्बू बिखेरते रहते। गुड़हल का पौधा थोडा बड़ा हो गया और जंगले से उचक उचक कर बाहर की दुनिया देखने कि कोशिस करता रहता। फिर एक बेल उग आयी। हरे हरे चिकने पत्ते। उस बेल ने गुड़हल के पौधे से लिपटना शुरू किया और फिर एक पौधे से दुसरे पौधे होते हुए उसने जंगले को भी खुद मेंलपेटना शुरू कर दिया। अब जंगले के बाहर से सिर्फ वो हरे पत्ते वाली बेल ही दिखती है ,और बाकि पौधे खुली हवा में सांस लेने को भी छटपटाते हैं। आज तय किया है मैंने इस रीढ़ रहित बेल को बेशक वो खूबसूरत ही सही मैं अपने जंगले वाले छोटे से बगीचे से काट कर अलग कर ही दूंगा। फेकुंगा नही। उसे भी एक छोटे से गमले में लगाऊंगा और कोसिस करूँगा कि मेरे बगीचे के पौधों का सहारा लेकर उठे तो पर मेरे गुड़हल, कनेर , गुलाब और तुलसी को भी जंगले से आने वाली ताज़ी हवा मिलती रहे और उन्हें भी बहार की दुनिया देखते रहने का मौका। और बेल का क्या ? वो तो फिर किसी न किसी का सहारा लेकर बढ़ेगी ही बढ़ना ही चाहेगी और फिर काटना पड़ेगा ससुरी को
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